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व्यवहार के प्रयोग
व्यवहारज्ञ जब उक्त व्यवहारपंचक में से किसी एक व्यवहार का किसी एक व्यवहर्तव्य ( व्यवहार करने योग्य श्रमण या श्रमणी ) के साथ प्रयोग करता है तो विधि के निषेधक को या निषेध के विधायक को प्रायश्चित्त देता है तब व्यवहार शब्द प्रायश्चित्त रूप तप का पर्यायवाची हो जाता है। अतः यहाँ प्रायश्चित्त रूप तप का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
१. गुरुक, २. लघुक, ३. लघुस्वक ।
गुरुक के तीन भेद
१. गुरुक, २. गुरुतरंक और ३. यथागुरुक । लघु के तीन भेद
१. लघुक, २. लघुतरक और ३. यथालघुक ।
लघुस्वक के तीन भेद
१. लघुस्वक, २. लघुस्वतरक और ३. यथालघुस्वक ।
गुरु प्रायश्चित्त महा प्रायश्चित्त होता है उसकी अनुद्घातिक संज्ञा है। इस प्रायश्चित्त के जितने दिन निश्चित हैं और जितना तप निर्धारित है वह तप उतने ही दिनों में पूरा होता है । यह तप दर्पिकाप्रतिसेवना वालों को ही दिया जाता है।
गुरुक व्यवहार — प्रायश्चित्त तप
१. गुरु प्रायश्चित्त - एक मास पर्यन्त अट्ठम' तेला (तीन दिन उपवास)
२. गुरुतर प्रायश्चित्त - चार माह पर्यन्त दशम - चोला (चार दिन का उपवास)
३. गुरुतर प्रायश्चित्त - छह मास पर्यन्त द्वादशम े - पचोला (पाँच दिन का उपवास )
लघुक व्यवहार/ प्रायश्चित्त तप
१. लघु प्रायश्चित्त- तीस दिन पर्यन्त छट्ठ - बेला (दो उपवास)
२. लघुतर प्रायश्चित्त - पचीस दिन पर्यन्त चउत्थ^ - उपवास ।
१. एक मास में आठ अट्ठम होते हैं- इनमें चौबीस दिन तपश्चर्या के और आठ दिन पारणा के । अन्तिम पारणे का दिन यदि छोड़ दें तो एक माह (इकतीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है।
२. एक माह में छह दसम होते हैं- इनमें चौबीस दिन तपश्चर्या के और छह दिन पारणे के- इस प्रकार एक मास (तीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है।
३. एक मास में पाँच द्वादशम होते हैं- इनमें पचीस दिन तपश्चर्या के और पाँच दिन पारणे के इस प्रकार एक मास (तीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है।
४. तीस दिन में दस छट्ठ होते हैं- इनमें बीस दिन तपश्चर्या के और दस दिन पारणे के होते हैं।
५. पचीस दिन में तेरह उपवास होते हैं- इनमें तेरह दिन तपश्चर्या के और बारह दिन पारणे के। अन्तिम पारणे का दिन यहाँ नहीं गिना है।
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