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प्रथम उद्देशक ]
सूत्र १०-११
१२- १५, २०,
२१,२५- ३३
१६-१७
ले
एक काल में साधु-साध्वियों के रहने के योग्यायोग्य ग्रामादि का,
१८
१९
२२-२४
३४
३५-३६, ४८ विचरण काल का एवं विचरण के क्षेत्रों की मर्यादा का, विरोधी राज्यों के बीच गमनागमन न करने का,
३७
३८-४१
४२-४३
४४
४५
४६-४७
[ १५७
अनेक प्रकार के कल्प्याकल्प्य उपाश्रयों का,
घटीमात्रक के (मिट्टी की घटिया की आकृति वाले मात्रक के) कल्प्याकल्प्य का,
चिलमिलिका (मच्छरदानी) रखने का,
जल के किनारे खड़े रहना आदि का,
शय्यातर का संरक्षण ग्रहण करने—न करने का,
क्लेश को पूर्णतः उपशान्त करने का,
गोचरी आदि के लिये गये हुए साधु-साध्वियों को वस्त्रादि लेने की विधि का, रात्रि में आहारादि ग्रहण न करने का,
रात्रि में विहार न करने का,
रात्रि में दूरवर्ती संखडी (जीमनवार) के लिये न जाने का,
रात्रि में उपाश्रय की सीमा के बाहर अकेले न जाने,
इत्यादि भिन्न-भिन्न विषयों का वर्णन किया गया है।
॥ प्रथम उद्देशक समाप्त ॥