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________________ प्रथम उद्देशक] [१५१ रात्रि में गमनागमन का निषेध ४४. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा अद्धाणगमणं एत्तए। ४५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा संखडिं वा संखडिपडियाए एत्तए। ४४. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को रात्रि में या विकाल में मार्ग-गमन करना नहीं कल्पता है। ४५. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को रात्रि में या विकाल में संखडी के लिये संखडी-स्थल पर (अन्यत्र) जाना भी नहीं कल्पता है। विवेचन-प्रथम सूत्र में रात्रि या सन्ध्याकाल में साधु और साध्वियों को विहार करने का सर्वथा निषेध किया गया है, क्योंकि उस समय गमन करने पर मार्ग पर चलने वाले जीव दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। अतः ईर्यासमिति का पालन नहीं हो सकता है और उसके पालन न होने से संयम की विराधना होती है तथा उत्तरा. अ. २६ में ईर्यासमिति का काल दिन का ही कहा है, रात्रि का नहीं, इस मर्यादा का उल्लंघन भी होता है। इसके अतिरिक्त पैरों में कांटे आदि लगने से, ठोकर खाकर गिरने से या गड्ढे में पड़ जाने से आत्म-विराधना भी होती है, सांप आदि के द्वारा डंसने की या शेर-चीते आदि के द्वारा खाये जाने की भी सम्भावना रहती है, इसलिए रात्रि में गमन करने का सर्वथा निषेध किया गया दूसरे सूत्र में संखडी में जाने का निषेध किया है। भोज या जीमनवार-विशेष को संखडी कहते हैं, जो एक दिन का या अनेक दिन का भी होता है। उसमें मुख्य दिन आसपास के सभी ग्रामवासियों को आने के लिए निमन्त्रण दिया जाता है। ऐसे क्षेत्र में रहे हुए भिक्षु को उस दिन अन्यत्र कहीं भिक्षा प्राप्त नहीं होती है। ऐसी परिस्थिति में दो कोस के भीतर की संखडी में से जनसमूह के आने के पूर्व भिक्षु गोचरी ला सकता है। ___आचारांग श्रु. २, अ. १, उ. २ में दो कोस उपरान्त संखडी में जाने का निषेध है तथा निमन्त्रण देने पर भी संखडियों में जाने का एवं वहां ठहरने का भी निषेध है। अतः उक्त परिस्थिति के कारण दो कोस के भीतर की संखडी में से भिक्षा लाने के संकल्प से कोई भिक्षु सूर्योदय पूर्व अपने स्थान से निकलकर वहां सूर्योदय बाद भिक्षा ग्रहण करने हेतु जाना चाहे तो उसका प्रस्तुत सूत्र में निषेध किया गया है। अतः उक्त संखडी में कभी जाना आवश्यक हो तो भिक्षु दिन में ही विवेकपूर्वक जा सकता है। ___ सूत्र में रात्रि शब्द के साथ विकाल शब्द के प्रयोग से यह बताया गया है कि सूर्योदय पूर्व उषाकाल में एवं सूर्यास्त बाद सन्ध्याकाल में भी भिक्षु को विहार एवं संखडी के लिये गमनागमन नहीं करना चाहिए। रात्रि में स्थंडिल एवं स्वाध्याय-भूमि में अकेले जाने का निषेध ४६. नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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