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________________ १४४] [बृहत्कल्पसूत्र सुनिश्चित है, अतः वर्षाकाल में चार मास तक एक स्थान पर ही साधु-साध्वियों के रहने का विधान प्रथम सूत्र में किया गया है। द्वितीय सूत्र में चातुर्मास पश्चात् आठ मास तक विचरण करने का कथन है। विचरण करने से संयम की उन्नति, धर्मप्रभावना, ब्रह्मचर्यसमाधि एवं स्वास्थ्यलाभ होता है तथा जिनाज्ञा का पालन होता है। जिस क्षेत्र में चातुर्मास या मासकल्प व्यतीत किया हो, वहां उसके बाद स्वस्थ अवस्था में भी रहना या दुगुना समय अन्यत्र विचरण किये बिना आकर रहना निषिद्ध है और उसका प्रायश्चित्तविधान भी है। अत: ग्रीष्म एवं हेमन्त ऋतु में शक्ति के अनुसार विचरण करना आवश्यक है। वैराज्य-विरुद्धराज्य में बारंबार गमनागमन का निषेध ३७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वेरज्ज-विरुद्धरजंसि सज्ज गमणं, सज्जं आगमणं, सज्जं गमणागमणं करित्तए। जो खलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा वेरज्ज-विरुद्धरजंसि सज्जं गमणं, सज्जं आगमणं सज्जंगमणागमणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं। ३७. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को वैराज्य और विरोधी राज्य में शीघ्र जाना, शीघ्र आना, और शीघ्र जाना-आना नहीं कल्पता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी वैराज्य और विरोधी राज्य में शीघ्र जाना, शीघ्र आना और शीघ्र जानाआना करते हैं तथा शीघ्र जाना-आना करने वालों का अनुमोदन करते हैं, वे दोनों (तीर्थंकर और राजा) की आज्ञा का अतिक्रमण करते हुए अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्तस्थान के पात्र होते हैं। विवेचन-नियुक्तिकार ने और तदनुसार टीकाकार ने वैराज्य के अनेक व्युत्पत्तिपरक अर्थ किये हैं १. जिस राज्य में रहने वाले लोगों में पूर्व-पुरुष-परम्परागत वैर चल रहा हो। २. जिन दो राज्य में वैर उत्पन्न हो गया हो। ३. दूसरे राज्य के ग्राम-नगरादि को जलाने वाले जहां के राजा लोग हों। ४. जहां के मंत्री सेनापति आदि प्रधान पुरुष राजा से विरक्त हो रहे हों, उसे पदच्युत करने के षड्यन्त्र में संलग्न हों। ५. जहां का राजा मर गया हो या हटा दिया गया हो ऐसे अराजक राज्य को 'वैराज्य' कहते जहां पर दो राजाओं के राज्य में परस्पर गमनागमन प्रतिषिद्ध हो, ऐसे राज्यों को 'विरुद्धराज्य' कहते हैं।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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