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________________ ११८] [ दशाश्रुतस्कन्ध १२. नया कलह करना, १३. पुराने शान्त कलह को पुनः उभारना, १४. अकाल (चोंतीस प्रकार के अस्वाध्यायों) में सूत्रोच्चारण करना, १५. सचित्त रज या अचित्त रज से युक्त हाथ पांव का प्रमार्जन नहीं करना अर्थात् प्रमार्जन किए बिना बैठ जाना या अन्य कार्य में लग जाना, १६. अनावश्यक बोलना, वाक्युद्ध करना एवं जोर-जोर से आवेश युक्त बोलना, १७. संघ में या संगठन में अथवा प्रेम सम्बन्ध में भेद उत्पन्न हो ऐसा भाषण करना, १८. कलह करना, झगड़ना, तुच्छतापूर्ण व्यवहार करना, १९. मर्यादित समय के अतिरिक्त दिन भर कुछ न कुछ खाते ही रहना, २०. अनेषणीय आहार- पानी आदि ग्रहण करना अर्थात् एषणा के छोटे दोषों की उपेक्षा करना । दूसरी दशा का सारांश सबल, प्रबल, ठोस, भारी, वजनदार, विशेष बलवान आदि लगभग एकार्थक शब्द हैं। संयम के सबल दोषों का अर्थ है कि सामान्य दोषों की अपेक्षा बड़े दोष या विशेष दोष । इस दशा में ऐसे बड़े दोषों को 'शबल दोष' कहा गया है। ये दोष संयम के अनाचार रूप होते हैं । इनका प्रायश्चित्त भी गुरुतर होता है तथा ये संयम में विशेष असमाधि उत्पन्न करने वाले हैं। प्रकारान्तर से कहें तो ये शबल दोष संयम में बड़े अपराध हैं और असमाधिस्थान संयम में छोटे अपराध हैं । इक्कीस सबल दोष १. हस्तकर्म करना, २ . मैथुन सेवन करना, ३. रात्रिभोजन करना, ४. साधु के अर्थात् अपने निमित्त बने आधाकर्मी आहारपानी आदि को लेना, ५. राजा के घर गोचरी जाना, ६. सामान्य साधुसाध्वियों के निमित्त बने उद्देशक आहार आदि लेना या साधु के लिए खरीदना आदि क्रिया की हो ऐसे आहारादि पदार्थ लेना, ७. बारम्बार तप त्याग आदि का भंग करना, ८. बारम्बार गण का त्याग करना और स्वीकार करना, ९, १९. घुटने (जानु ) जल में डूबें इतने पानी में एक मास में तीन बार या वर्ष में १० बार चलना । अर्थात् आठ महीने के आठ और एक अधिक कुल ९ बार उतरने पर सबल दोष नहीं है । १०,२०. एक मास में तीन बार और वर्ष में १० बार ( उपाश्रय के लिए) माया कपट करना । अर्थात् उपाश्रय दुर्लभ होने पर ९ बार वर्ष में माया करना पड़े वह सबल दोष नहीं है । ११. शय्यातर पिंड ग्रहण करना, १२-१४. जानकर संकल्पपूर्वक हिंसा करना, झूठ बोलना, अदत्तग्रहण करना । १५-१७. त्रस स्थावर जीव युक्त अथवा सचित्त स्थान पर या उसके अत्यधिक निकट बैठना, सोना, खड़े रहना । १८. जानकर सचित्त हरी वनस्पति (१. मूल, २. कंद, ३. स्कन्ध, ४. छाल, ५. कोंपल, ६. पत्र, ७. पुष्प, ८. फल, ९. बीज और १०. हरी वनस्पति) खाना । २१. जानकर सचित्त जल के लेप युक्त हाथ या बर्तन से गोचरी लेना । यद्यपि अतिचार - अनाचार अन्य अनेक हो सकते हैं, फिर भी यहां अपेक्षा से २० असमाधिस्थान और २१ सबल दोष कहे गए हैं। अन्य दोषों को यथा योग्य विवेक से इन्हीं में अंतर्भावित कर लेना चाहिए ।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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