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________________ ९४] [दशाश्रुतस्कन्ध वह उस पति की इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, अतीव मनोहर, धैर्य का स्थान, विश्वासपात्र, सम्मत, बहुमत, अनुमत (अतीव मान्य) रत्नकरण्डक के समान केवल एक भार्या होती है। __ आते-जाते उसके आगे छत्र, झारी लेकर अनेक दासी-दास, नौकर-चाकर चलते हैं यावत् एक को बुलाने पर उसके सामने चार-पांच बिना बुलाये ही आकर खड़े हो जाते हैं और पूछते हैं कि 'हे देवानुप्रिये! कहो हम क्या करें? यावत् आपके मुख को कौन-से पदार्थ अच्छे लगते हैं ?' प्र०-क्या उस ऋद्धिसम्पन्न स्त्री को तप-संयम के मूर्तरूप श्रमण-माहण उभयकाल केवलिप्रज्ञप्त धर्म कहते हैं ? उ०-हां, कहते हैं। प्र०-क्या वह (श्रद्धापूर्वक) सुनती है? उ०-यह सम्भव नहीं है, क्योंकि वह उस धर्मश्रवण के लिये अयोग्य है। वह उत्कृष्ट अभिलाषाओं वाली यावत् दक्षिणदिशावर्ती नरक में कृष्णपाक्षिक नैरयिक रूप में उत्पन्न होती है तथा भविष्य में उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति भी दुर्लभ होती है। हे आयुष्मन् श्रमणो! उस निदानशल्य का यह पापकारी परिणाम है कि वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण भी नहीं कर सकती है। ३. निर्ग्रन्थ का स्त्रीत्व के लिये निदान करना एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे जाव' सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स सिक्खाए निग्गंथे उवट्ठिए विहरमाणे जाव' पासेज्जा-से जा इमा इत्थिया भवति–एगा, एगजाया जाव जं पासित्ता निग्गंथे निदाणं करेंति - दुक्खं खलु पुमत्तणए, जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, एतेसिं णं अण्णतरेसु उच्चावएसु महासमरसंगामेसु उच्चावयाइं सत्थाइं उरंसि चेव पडिसंवेदेति।तंदुक्खं खलु पुमत्तणए, इत्थित्तणयं साहु। 'जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साए इमाइं एयारूवाई उरालाई इथिभोगाइं भुंजमाणे विहरामि-से तं साहु।' एवं खलु समणाउसो! निग्गंथे णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय-अपडिक्कंते जाव आगमेस्साए दुल्लहबोहिए यावि भवइ। एवं खलु समणाउसो! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे जं नो संचाएइ केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए। १-३. प्रथम निदान में देखें। ४. द्वितीय निदान में देखें।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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