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सातवीं दशा ]
मासिकी भिक्षुप्रतिमा
मासिणं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहित्तए, एगा पाणस्स ।
अण्णायउञ्छं, सुद्धोवहडं,
निज्जूहित्ता बहवे दुप्पय- चउप्पय- समण - माहण- अतिहि किविणं वणीमगे,
कप्पड़ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहित्तए ।
णो दुहं णो तिण्हं, णो चउण्हं, णो पंचण्हं, णो गुव्विणीए, णो बालवच्छए, णो दारगं पेज्जमाणीए ।
णो से कप्पड़ अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहट्टु दलमाणीए, णो बाहिँ एलुयस्स दो वि पाए साहट्टु दलमाणीए ।
अह पुण एवं जाणेज्जा, एगं पायं अंतो किच्चा, एगं पायं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं से दलयति, कप्पति से पडिगाहित्तए,
एवं से नो दलयति, नो से कप्पति पडिगाहित्तए ।
मासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की लेना
कल्पता है
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वह भी अज्ञात स्थान से, अल्पमात्रा में और दूसरों के लिए बना हुआ तथा अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और भिखारी आदि भोजन लेकर चले गए हों, उसके बाद ग्रहण करना कल्पता है ।
जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो, वहाँ से आहार- पानी की दत्ति लेना कल्पता है । किन्तु दो, तीन, चार या पांच व्यक्ति एक साथ बैठकर भोजन करते हों, वहाँ से लेना नहीं
कल्पता है।
गर्भिणी, बालवत्सा और बच्चे को दूध पिलाती हुई स्त्री से लेना नहीं कल्पता है । जिसके दोनों पैर देहली के अन्दर या दोनों पैर देहली के बाहर हों, ऐसी स्त्री से लेना नहीं
कल्पता है ।
किन्तु यह ज्ञात हो जाए कि एक पैर देहली के अन्दर है और एक पैर बाहर है, इस प्रकार देहली को पांवों के मध्य में किये हुए हो और वह देना चाहे तो उससे लेना कल्पता है । इस प्रकार न दे तो लेना नहीं कल्पता है ।
प्रतिमाधारी के भिक्षाकाल
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स तओ पण्णत्ता, तं जहा१. आइमे, २. मज्झे, ३. चरिमे ।
१. जइ आइमे चरेज्जा; नो मज्झे चरेज्जा, णो चरिमे चरेज्जा ।