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द्वितीय अध्ययन ४. जइ णं भंते समणेणं भगवया (जाव) संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते, अज्झयणस्स के अढे पन्नत्ते ? ___ "एवं खलु जम्बू !'
तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था। तीसे णं सुकालीए पुत्ते सुकाले नामं कुमारे। तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स महापउमा नाम देवी होत्था, सुउमाला।
तए णं सा महापउमा देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि, एवं तहेव, महापउमे नाम दारए, (जाव) सिज्झिहिइ। नवरं ईसाणे कप्पे उववाओ। उक्कोसटिईओ।
॥बीयं अज्झयणं ॥२२॥ ४. जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया – भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का उक्त भाव प्रतिपादित किया है तो हे भदन्त! उसके द्वितीय अध्ययन का क्या आशय कहा है ?
सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया - आयुष्मन् जम्बू ! वह इस प्रकार है -
उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। कूणिक राजा था। पदमावती रानी थी। उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की विमाता सुकाली नाम की रानी थी। उस सुकाली का पुत्र सुकाल नामक राजकुमार था। उस राजकुमार सुकाल की सुकुमाल आदि विशेषता युक्त महापद्मा नाम की पत्नी थी।
उस महापद्मा ने किसी एक रात्रि में सुखद शैया पर सोते हुये एक स्वप्न देखा, इत्यादि पूर्ववत् वर्णन करना चाहिये। बालक का जन्म हुआ और उसका महापद्म नामकरण किया गया यावत् वह प्रव्रज्या अंगीकार करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। विशेष यह है कि ईशान कल्प में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी उत्कृष्ट स्थिति (कुछ अधिक दो सागरोपम) हुई।
निक्षेप – इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण यावत् मुक्ति-संप्राप्त भगवान् ने कल्पावतंसिका के द्वितीय अध्ययन का यह भाव बताया है, इस प्रकार मैं कहता हूँ।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
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