SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय संस्करण-प्रकाशन के अर्थ सहयोगी १. श्री हरकचन्दजी बेताला, डेह, इन्दौर श्री आगम-प्रकाशन समिति द्वारा प्रकाशित निरयावलिका सूत्र के द्वितीय संस्करण के विशिष्ट अर्थ सहयोगी श्री हरकचन्दजी बेताला का जन्म वि. संवत् १९७० में नागौर (राजस्थान) जनपद के डेह ग्राम निवासी श्री सुगनचन्दजी बेताला के यहाँ हुआ। आपकी मातुश्री का देहान्त आपकी बाल्यावस्था में ही हो गया था। आपका लालन-पालन श्री अमोलकचन्दजी के दत्तक पुत्र के रूप में हुआ। धर्मप्रेमी, उदार हृदय एवं सरल स्वभावी श्री हरकचन्दजी बचपन से ही अत्यन्त प्रतिभाशाली रहे हैं। लगभग १३ वर्ष की अल्पायु में ही आप अर्थोपार्जन के लिये आसाम चले गये थे। आपने वहां टंगला व गोहाटी में व्यापार- व्यवसाय प्रारम्भ किया तथा अपनी सहज प्रतिभा से निरन्तर प्रगति कर आगे बढ़ते गये। आपने व्यावसायिक क्षेत्र में अच्छी ख्याति अर्जित की। वर्तमान में आपका स्थायी निवास इन्दौर में है। वहां के दाल-मिल उद्योगपतियों में आपका प्रमुख स्थान है। इन्दौर के अतिरिक्त दाहोद तथा कानपुर में भी आपकी दाल-मिलें हैं। बाल्यकाल में शिक्षण के योग्य साधन न मिल पाने से आप स्वयं तो सामान्य स्कूली शिक्षा ही प्राप्त कर पाये किन्तु शिक्षा के प्रति विशिष्ट लगाव के कारण आपने अपने पुत्र-पौत्रादि के लिये उच्च लौकिक शिक्षण की व्यवस्था की। आपके पुत्र श्रीमान् सागरमलजी बेताला श्री आगम प्रकाशन समिति के अध्यक्ष हैं। एक पुत्र डाक्टर है एवं एक चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट है। अपने श्रम एवं बुद्धि-चातुर्य से उपार्जित धन का सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं के उन्नयन हेतु आप खुले दिल से उपयोग करते हैं। आप अ. भा. श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेन्स द्वारा संचालित 'जीवन-प्रकाशन-योजना' तथा महावीर स्वास्थ्य केन्द्र इन्दौर के संरक्षक हैं। श्री इन्दौर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ने आपकी जन-सेवा का आदर-सम्मान करने के लिये आपको 'समाज-शिरोमणि' की उपाधि से विभूषित किया है। आपके आठ पुत्र हैं। आपके समान ही आपके आठों पुत्र भी धार्मिक आचार-विचार वाले और सामाजिक कार्यों में तन-मन-धन से सक्रिय सहयोग देने को तत्पर रहते हैं। पुत्र-पौत्रादि से समृद्ध आपका श्री-सम्पन्न एवं इन्दौर का प्रतिष्ठित परिवार है। आपकी तरह ही आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सौभाग्यवती चूकीबाई भी धार्मिक आचार-विचार और सरल स्वभाव वाली महिला थीं। कुछ दिन पूर्व ही उनका स्वर्गवास हो गया आपने इस सूत्र के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन में विशिष्ट अर्थ-सहयोग प्रदान किया है। आशा है भविष्य में भी समिति को आपकी ओर से इसी प्रकार सहयोग प्राप्त होता रहेगा। - मंत्री
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy