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वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
सागर में निमग्न हो, हथेली पर मुख को टिका कर आर्त्तध्यान में डूब गई ।
तब चेलना देवी की अंगपरिचारिकाओं (आभ्यन्तर दासियों) ने चेलना देवी को सूखी - सी, भूख से ग्रस्त - सी यावत् चिन्तित देखा। देख कर वे श्रेणिक राजा के पास पहुँचीं। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर आवर्तपूर्वक, मस्तक पर अंजलि करके श्रेणिक राजा से इस प्रकार निवेदन किया 'स्वामिन् ! न मालुम किस कारण से चेलना देवी शुष्क- बुभुक्षित जैसी हो कर यावत् आर्त्तध्यान में डूबी हुई हैं।'
श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं की इस बात को सुन कर और समझ कर आकुलव्याकुल होता हुआ, जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया । चेलना देवी की सूखी -सी, भूख से पीड़ित जैसी, यावत् आर्त्तध्यान करती हुई देख कर इस प्रकार बोला 'देवानुप्रिये ! तुम क्यों शुष्क शरीर, भूखी सी यावत् चिन्ताग्रस्त हो रही हो ?'
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लेकिन चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस प्रश्न का आदर नहीं किया अर्थात् उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप बैठी रही ।
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तब श्रेणिक राजा ने पुनः दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी यही प्रश्न चेलना देवी से पूछा और कहा • देवानुप्रिये ! क्या मैं इस बात को सुनने के योग्य नहीं हूँ जो तुम मुझसे इसे छुपा रही हो ? दूसरी और तीसरी बार कही श्रेणिक राजा की इस बात को सुन कर चेलना देवी ने श्रेणिक राजा 'स्वामिन् ! ऐसी तो कोई भी बात नहीं है, जिसे आप सुनने के योग्य न हों और न इस बात को सुनने के लिये ही आप अयोग्य हैं । परन्तु स्वामिन् ! बात यह है कि उस उदार यावत् महास्वप्न को देखने के तीन मास पूर्ण होने पर मुझे इस प्रकार का यह दोहद उत्पन्न हुआ है
से इस प्रकार कहा
वे माताएं धन्य हैं जो आपकी उदरावली के शूल पर सेके हुए यावत् मांस द्वारा तथा मदिरा द्वारा अपने दोहद को पूर्ण करती हैं।' लेकिन स्वामिन्! उस दोहद को पूर्ण न कर सकने के कारण मैं शुष्कशरीरी, भूखी-सी यावत् चिन्तित हो रही हूँ ।
श्रेणिक का आश्वासन
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१३. तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देविं एवं वयासी 'मा णं तुमं, देवाणुप्पिए! आय (जाव) झियाहि । अहं णं तहा जत्तिहामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ' त्ति कट्टू चेल्लणं देवं ताहिं इट्ठाहिं कन्ताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मङ्गल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहिं समासासेइ, समासित्ता चेल्लणाए देवीए अन्तियाओ पडिणिक्खमइ, पछिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला, जेणेव सीहासणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरुत्थाभिमुहे निसीयइ, तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहूहिं आएहिं उवाएहि य, उप्पत्तियाए य वेणइयाए य कम्मियाए य पारिणामियाए य परिणामेमाणे परिणामेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिझं वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे (जाव) झियाइ ।
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