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________________ [ निरयावलिकासूत्र 'काली' इ समणे भगवं कालिं देविं एवं वयासी एवं खलु, काली तव पुत्ते काले कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं ( जाव ) कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं संगामेमाण हयमहियपवरवीर घाइयणिवडियचिंधज्झयपडागे निरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रन्नो सपक्खं सपडिदिसिं रहेण पडिरहं हव्वमागए। तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुते ( जाव) मिसिमिसेमाणे धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता बड़साहं ठाणं ठाइ, ठाइत्ता आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवे । तं कालगए णं काली ! काले कुमारे, नो चेव णं तुमं कालं कुमारं जीवमाणं पासिहिसि । ' १० 1 ९. तत्पश्चात् श्रमण भगवान् ने यावत् उस काली देवी और विशाल जनपरिषद् को धर्मदेशना सुनाई । यहाँ औपपातिक सूत्र के अनुसार धर्मदेशना का कथन करना चाहिये कि यावत् श्रमणोपासक और श्रमणोपासका आज्ञा के आराधक होते हैं । " इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर से धर्मश्रवण कर और उसे हृदय में अवधारित कर काली रानी ने हर्षित, संतुष्ट यावत् विकसितहृदय होकर श्रमण भगवान् को तीन बार वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया भदन्त! मेरा पुत्र काल कुमार तीन हजार हाथियों यावत् रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है, तो हे भगवन् ! तो क्या वह विजयी होगा अथवा विजयी नहीं होगा ? यावत् क्या मैं ATM कुमार को जीवित देख सकूंगी? प्रत्युत्तर में 'हे काली !' इस प्रकार से संबोधित कर श्रमण भगवान् ने काली देवी से कहा काली ! तुम्हारा पुत्र काल कुमार, जो तीन हजार हाथियों यावत् कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम में जूझते हुये वीरवरों को आहत, मर्दित, घातित करते हुये और उनकी संकेतसूचक ध्वजापताकाओं को भूमिसात् करते हुये- गिराते हुये, दिशा विदिशाओं को आलोकशून्य करते हुये रथ से रथ को अड़ाते हुये चेटक राजा के सामने आया । तब चेटक राजा ने कुमार काल को आते हुये देखा, देखकर क्रोधाभिभूत हो यावत् मिस - मिसाते हुये धनुष को उठाया । उठाकर बाण को हाथ में लिया, लेकर धनुष पर बाण चढ़ाया, चढ़ाकर उसे कान तक खींचा और खींचकर एक ही वार में आहत करके, रक्तरंजित करके निष्प्राण कर दिया। अतएवं हे काली ! वह काल कुमार कालकवलित - मरण को प्राप्त हो गया है। अब तुम काल कुमार को जीवित नहीं देख सकती हो। विवेचन महापुरुषों का यह उपदेश और नीति है कि प्रिय एवं सत्य भाषा का प्रयोग करना चाहिये ॥ तब भगवान् ने ऐसा अनिष्ट और अप्रिय उत्तर क्यों दिया ? इसका समाधान यह है कि भगवान् सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे । उस समय जो कुछ हो रहा या हो चुका था, उसको न तो वे बदल सकते थे और न छिपा सकते थे । अतएव भगवान् ने वही स्पष्ट किया जो हो रहा था। भगवान् ने तो युद्ध १. औपपा. पृष्ठ १०८ ( आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर )
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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