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________________ ८ ] [ निरयावलिकासूत्र काली देवी की चिन्ता ७. तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए (जाव) समुप्पज्जित्था - ‘एवं खलु ममं पुत्ते कालकुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं (जाव) ओयाए। से मन्ने, किं जइस्सइ ? जीविस्सइ ? नो जीविस्सइ ? पराजिणिस्सइ ? नो पराजिणिज्ञाइ ? काले णं कुमारे अहं जीवमाणं पासिजा ?' ओहयमण. (जाव) झियाइ॥ ७. तब एक बार अपने कुटुम्ब-परिवार की स्थिति पर विचार करते हुये काली देवी के मन में इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ - 'मेरा पुत्र कुमार काल तीन हजार हाथियों आदि को लेकर यावत् रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है। तो क्या वह विजय प्राप्त करेगा अथवा विजय प्राप्त नहीं करेगा ? वह जीवित रहेगा अथवा नहीं रहेगा ? शत्रु को पराजित करेगा या नहीं करेगा ? क्या मैं काल कुमार को जीवित देख सकूँगी ?' इत्यादि विचारों से वह उदास हो गई। निरुत्साहित-सी होती हुई यावत् आर्तध्यान में मग्न हो गई। चिन्तानिवारण हेतु काली का भगवान् के समीप गमन तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा निग्गया। तए णं तीसे कालीए देवीए इमीसे कहाए लट्ठाए समाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए, (जाव) समुप्पजित्था - ‘एवं खलु, समणे भगवं पुव्वाणुपुव्विं (जाव) विरइ। तं महाफलं खलु तहारूवाणं (जाव) विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए। तं गच्छामि णं समणं (जाव) पज्जुवासामि, इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामि' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावित्ता एवं वयासी - 'ख्यिामेव भो देवाणुप्पिया! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह।' उवट्ठवित्ता (जाव) पच्चप्पिणन्ति। तए णं सा काली देवी ण्हाया कयबलिकम्मा (जाव) अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा बहूहिं खुन्जाहिं (जाव) महत्तरगविन्दपरिक्खित्ता अन्तेउराओ निग्गच्छिता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता नियगपरियालसंपरिवुडा चम्पं नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्देचेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताइए (जाव) धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, निग्गच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहित्ता बहूहिं जाव खुजाहिं० विन्दपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ। ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नमसमाणी अभिमुहा विणएणं पञ्जलिउडा पजुवासइ। ८. उसी समय में श्रमण भगवान् महावीर का चम्पा नगरी में पदार्पण हुआ। भगवान् को वन्दना-नमस्कार करने एवं धर्मोपदेश सुनने के लिये जन-परिषद् निकली। तब वह काली देवी भी इस संवाद-समाचार को जान कर हर्षित हुई और उसे इस प्रकार का आन्तरिक यावत् संकल्प-विचार उत्पन्न हुआ – पूर्वानुपूर्वी क्रम से विहार करते हुए यावत् श्रमण भगवान् महावीर यहाँ विराज रहे हैं।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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