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________________ १३६ ] [ दृढप्रतिज्ञ : (सम्बद्ध अंश) छन्दों को बनाना और पहचानना, २२. पहेलियां बनाना, २३. मागधिक मागधी भाषा में गाथा आदि बनाना, २४. निद्रायिका - नींद में सुलाने की कला, २५. प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, २६. गीति छन्द बनाना, २७. श्लोक (अनुष्टुप छन्द) बनाना, २८. हिरण्ययुक्ति - चांदी बनाना और चांदी शुद्ध करना, २९. स्वर्णयुक्ति - स्वर्ण बनाना और स्वर्ण शुद्ध करना, ३०. आभूषण - अलंकार बनाना, ३१. तरुणीप्रतिकर्म - स्त्रियों का शृंगार, प्रसाधन करना, ३२. स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानना, ३३. पुरुष के लक्षण जानना, ३४ अश्व के लक्षण जानना, ३५. हाथी के लक्षण जानना, ३६. मुर्गों के लक्षण जानना, ३७. छत्र के लक्षण जानना, ३८. चक्र के लक्षण जानना, ३९. दंड - लक्षण जानना, ४०. असि (तलवार) लक्षण जानना, ४१. मणि लक्षण जानना, ४२. काकणी ( रत्न विशेष ) लक्षण जानना, ४३. वास्तुविद्या-गृह, गृहभूमि के गुण दोषों को जानना, ४४. नया नगर बसाने की कला, ४५ . स्कन्धावार-सेना के पडाव की रचना करने की कला, ४६. मापने - नापने - तोलने के साधनों को जानना, ४७. प्रतिचार-शत्रु सेना के सामने अपनी सेना का संचालन, ४८. व्यूह रचना - मोर्चा जमाना, ४९. चक्रव्यूह - चक्र के आकार की मोर्चाबंदी करना, ५०. गरुड़व्यूह - गरुड़ के आकार की व्यूह रचना करना, ५१. शकटव्यूह रचना, ५२. सामान्य युद्ध रचना, ५३. नियुद्ध - मल्ल युद्ध करना, ५४. युद्ध-युद्ध शत्रु सेना की स्थिति के अनुसार युद्ध विधि बदलने की कला, घमासान युद्ध करना, ५५. अट्ठियुद्ध लकड़ी से युद्ध करना, ५६. मुष्ठियुद्ध करना, ५७. बाहुयुद्ध करना, ५८. लतायुद्ध करना, ५९. इक्ष्वस्त्र नागबाण आदि विशिष्ट वाणों के प्रक्षेपण की विधि, ६०. तलवार चलाने की कला, ६१. धनुर्वेद धनुषवाण संबंधी कौशल, ६२. चांदी का पाक बनाना, ६३. सोने का पाक बनाना, ६४. मणियों के निर्माण की कला, अथवा मणियों की भस्म आदि औषध बनाना, ६५. धातुपाक - औषध के लिये अभ्रक आदि की भस्म बनाना, ६६. सूत्रखेल - रस्सी पर खेल तमाशे, क्रीड़ा करने की कला, ६७. वृत्तखेल - क्रीड़ा विशेष, ६८. नालिकाखेल जुआ विशेष, ६९. पत्र को छेदने की कला, ७०. पर्वतीय भूमि को छेदने काटने की कला, ७१. मूच्छित को होश में लाने और अमूच्छित को मृत तुल्य करने की कला, ७२. काक, घूक आदि पक्षियों की बोली और उसके शुभ-अशुभ शकुन का > ज्ञान । - - - ३. तए णं से कलायरिए तं दढपइन्नं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गन्थओ य करणओ य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेहि । ३. तत्पश्चात् कलाचार्य गणित, लेखन आदि से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाओं को सूत्र (मूल पाठ) अर्थ- व्याख्या एवं प्रयोग से सिखलाकर, सिद्ध करा कर दृढ़प्रतिज्ञ बालक को मातापिता के पास ले जायेंगे । ४. तए णं तस्स दढपइन्नस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारिस्सन्ति संमाणिस्सन्ति, संमाणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्सन्ति, दलइत्ता पडिविसज्जेहिन्ति ।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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