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________________ १०० ] [ पुष्पचूलिका प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ।' अर्हत् प्रभु ने उत्तर दिया – 'देवानुप्रिये! इच्छानुसार करो।' भूता का प्रव्रज्याग्रहण तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जाणप्पवरं (जाव) दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागया। रायगिहं नयरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागया। रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागया। करयल०, जहा जमाली, आपुच्छइ। 'अहासुहं देवाणुप्पिए।' तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्तनाइ० आमंतेइ आमंतित्ता जाव जिमियभुत्तुत्तरकाले सुईभूए निक्खमणमाणेत्ता कोडम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी – "ख्पिामेव भो देवाणुप्पिया! भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवित्ता जाव पच्चप्पिणह।' तए णं ते (जाव) पच्चप्पिणन्ति। तए णं से सुदंसणे गाहावई भूयं दारियं ण्हायं विभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मित्तनाइ० (जाव) रवेणं रायगिहं नयरं मझमझेणं, जेणेव गुणसिलए चेइए, तेणेव उवागए, छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठावेइ, ठावित्ता भूयं दारियं सीयाओ पच्चारुहेइ। तए णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए, तेणेव उवागए तिक्खुत्तो वन्दइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - ‘एवं खलु देवाणुप्पिया! भूया दारिया अम्हं एगा धूया, इट्ठा। एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा भीया (जाव) देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा (जाव) पव्वयइ। तं एयं णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं दलयामो। पडिच्छन्तु णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं।' 'अहासुहं, देवाणुप्पिया।' तए णं सा भूया दारिया पासेणं अरहया ... एवं वुत्ता समाणी हट्ठा, उत्तरपुरस्थिमं, सयमेय आभरणमल्लालकारं उम्मुयइ, जहा देवाणन्दा, पुप्फचूलाणं अन्तिए (जाव) गुत्तबम्भयारिणी। ७. इसके बाद वह भूता दारिका यावत् उसी धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ हुई। आरूढ होकर जहाँ राजगृह नगर था, वहां आई। आकर रथ से नीचे उतरकर जहाँ माता-पिता थे उनके समीप आई। आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् अंजलि करके जमालि की तरह माता-पिता से आज्ञा मांगी। (अन्त में माता-पिता ने अपनी अनुमति देते हुये कहा –) देवानुप्रिये! जैसे सुख हो, तदनुकूल करो। १. भगवती सूत्र, श. ९ उ. ३३
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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