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________________ षष्ठ अध्ययन मणिभद्र देव उत्क्षेप ६०. उक्खेवओ - जइ णं भंते! सम्रणेणं भगवया जाव पुफियाणं पंचमस्स अज्झयणस्स जाव अयमढे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुफियाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते ? "एवं खलु जम्बू!' ६०. जम्बू अनगार ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा - भगवन्! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के पंचम अध्ययन का यह आशय कहा है तो भगवन्! मुक्ति प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिका के षष्ठ (छठे) अध्ययन का क्या आशय प्रतिपादन किया है ? आर्य सुधर्मा ने उत्तर में कहा - आयुष्मन् जम्बू! वह इस प्रकार है - ६१. एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिये राया। सामी समोसरिए। तेणं कालेणं तेणं समएणं मणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहा पुण्णभद्दो तहेव आगमणं, नट्टविही, पुव्वभवपुच्छा। मणिवई नयरी, मणिभद्दे गाहावई, थेराणं अन्तिए पव्वज्जा, एक्कारस अङ्गाइं अहिज्जइ, बहूहि वासाइं परियाओ, मासिया संलेहणा, सट्ठि भत्ताई। माणिभद्दे विमाणे उववाओ, दो सागरोवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। ॥ तइओ वग्गो समत्तो॥ ६१. उस काल और उस समय राजगृह नाम का नगर था। वहाँ गुणशिलक चैत्य था। वहाँ का राजा श्रेणिक था। एक बार वहाँ महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। उस काल और उस समय मणिभद्र देव सुधर्मा सभा के माणिभद्र सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देव आदि सहित दिव्य भोगोपभोगों को भोगते हुए विचर रहा था। पूर्णभद्र देव के समान वह भी भगवान् के समवसरण में आया और उसी प्रकार नृत्य-विधियाँ दिखाकर वापिस लौट गया। मणिभद्र देव के लौट जाने के पश्चात् गौतम स्वामी ने उसको देव-ऋद्धि आदि प्राप्त होने एवं पूर्वभव के विषय में पूछा। भगवान् ने उत्तर दिया -
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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