SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ ] [ पुष्पिका राजगृह नगर में समवसृत भगवान् महावीर स्वामी को देखा। उनको देख कर सूर्याभ देव के समान ( सिंहासन से उठ कर कुछ कदम जा कर यावत्) नमस्कार करके अपने उत्तम सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गई । फिर सूर्याभ देव के समान उसने अपने आभियोगिक देवों का बुलाया और उन्हें सुस्वरा घंटा बजाने की आज्ञा दी। उन्होंने सुस्वरा घंटा बजा कर सभी देव - देवियों को भगवान् के दर्शनार्थ चलने की सूचना दी। तत्पश्चात् पुनः आभियोगिक देवों को बुलाया और भगवान् के दर्शनार्थ जाने योग्य विमान की विकुर्वणा करने की आज्ञा दी। आज्ञानुसार उन आभियोगिक देवों ने यान- विमान की विकुर्वणा की । सूर्याभ देव के यान - विमान के समान इस विमान का वर्णन करना चाहिये । किन्तु वह यान- विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण था । सूर्याभ देव के समान वह अपनी समस्त ऋद्धि-वैभव के साथ यावत् उत्तर दिशा के निर्याण मार्ग से निकल कर एक हजार योजन ऊँचे वैक्रिय शरीर को बना कर भगवान् के समवसरण में उपस्थित हुई । भगवान् ने धर्मदेशना दी । धर्मदेशना की समाप्ति के पश्चात् उस बहुपुत्रिका देवी ने अपनी दाहिनी भुजा पसारी फैलाई । भुजा पसार कर एक सौ आठ देव कुमारों की ओर बायीं भुजा फैला कर एक सौ आठ देवकुमारिकाओं की विकुर्वणा की । इसके बाद बहुत से दारक -दारिकाओं (बड़ी उम्र के बच्चे-बच्चियों) तथा डिम्भक - डिम्भिकाओं ( छोटी उम्र के बालक-बालिकाओं) की विकुर्वणा की तथा सूर्याभ देव के समान नाट्य-विधियों को दिखा कर ( भगवान् को नमस्कार करके) वापिस लौट गई। गौतम की जिज्ञासा ३०. 'भंते' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ । कूडागारसाला । 'बहुपुत्तियाए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी' ... पुच्छा, 'जाव अभिसमन्नागया ?' 'एवं खलु गोयमा ! ' काणं तेणं समएणं वाणारसीनामं नयरी, अम्बसालवणे चेइए। तत्थ तं वाणारसीए नयरीए भद्दे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे ( जाव ) अपरिभूए । तस्स णं भद्दस्स सुभद्दा नामं भारिया सुउमाला वञ्झा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया यावि होत्था । ३०. उसके चले जाने के बाद गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया और 'भदन्त !' इस प्रकार सम्बोधन कर प्रश्न किया भगवन् ! उस बहुपुत्रिका देवी की वह दिव्य देवऋद्धि, द्युति और देवानुभाव कहाँ गया ? कहाँ समा गया ? भगवान् ने कहा शरीर में समा गई। १. सूर्याभ देव के यान - विमान का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र ( आगम-प्रकाशन समिति, ब्यावर ) पृष्ठ २६ - ३६ पर देखिये । गौतम ! वह देवऋद्धि आदि उसी के शरीर से निकली थी और उसी के
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy