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________________ १४] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र लिहइंदकीला, विवणिवणिछित्तसिप्पियाइण्णणिव्वुयसुहा, सिंघाडगतिगचउक्कचच्चर पणियावणविविहवत्थुपरिमंडिया, सुरम्मा, नरवइपविइण्णमहिवइपहा,अणेगवरतुरगमत्तकुंजररहपहकरसीयसंदमाणी आइण्णजाणजुग्गा, विमउलणवणलिणिसोभियजला, पंडुरवरभवणसण्णिमहिया, उत्ताणणयणपेच्छणिज्जा, पासादीया, दरिसणिज्जा, अभिरूवा) पडिरूवा। तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसंति महयाहिमवंतमलयमंदरमहिंदसारा रायवण्णओ भाणिअव्वो। [१४] भगवन् ! विद्याधर श्रेणियों की भूमि का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका भूमिभाग बड़ा समतल रमणीय है। वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों समतल है। वह बहुत प्रकार की कृत्रिम, अकृत्रिम मणियों तथा तृणों से सुशोभित है। दक्षिणवर्ती विद्याधरश्रेणि में गगनवल्लभ आदि पचास विद्याधर नगर हैं-राजधानियाँ हैं। उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणि में रथनूपुरचक्रवाल आदि साठ नगर हैं-राजधानियाँ हैं। इस प्रकार दक्षिणवर्ती एवं उत्तरवर्ती-दोनों विद्याधर-श्रेणियों के नगरों कीराजधानियों की संख्या एक सौ दश है। वे विद्याधर-नगर वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध हैं। (वहाँ के निवासी तथा अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति वहाँ आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते हैं। लोगों की वहाँ घनी आबादी है। सैकडों हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सहजतया सुन्दर मार्ग-सीमासी लगती है। वहाँ मुर्गों और युवा सांडों के बहुत समूह हैं। उसके आसपास की भूमि ईख, जौ और धान के पौधों से लहराती है। वहाँ गायों, भैंसों की प्रचुरता है। वहां शिल्पकला युक्त चैत्य और युवतियों के विविध सन्निवेशों-पण्य-तरुणियों के पाड़ों-टोलों का बाहुल्य है। वह रिश्वतखोरों, गिरहकटों, बटमारों, चोरों, खण्डरक्षकों -चुंगी वसूल करने वालों से रहित, सुख-शान्तिमय एवं उपद्रवशून्य है। वहाँ भिक्षुकों को भिक्षा सुखपूर्वक प्राप्त होती है, इसलिये वहाँ निवास करने में सब सुख मानते हैं, आश्वस्त हैं। अनेक श्रेणी के कौटुम्बिकपारिवारिक लोगों की घनी बस्ती होते हुए भी वह शान्तिमय है। नट-नाटक दिखाने वाले, नर्तक-नाचने वाले, जल्ल-कलाबाज-रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वाले, मल्ल-पहलवान, मौष्टिक-मुक्केबाज, विडम्बकविदूषक-मसखरे, कथक-कथा कहने वाले, प्लवक-उछलने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करने वाले, लासक-वीररस की गाथाएं या रास गाने वाले, आख्यायक-शुभ-अशुभ बताने वाले, लंख-बाँस के सिर पर खेल दिखाने वाले, मंख-चित्रपट दिखाकर आजीविका चलाने वाले, तूणइल्ल-तूण नामक तन्तुवाद्य बजाकर आजीविका कमाने वाले, तुंबवीणिक-तुंबवीणा या पूंगी बजाने वाले, तालाचर-ताली बजाकर मनोविनोद करने वाले आदि अनेक जनों से वह सेवित है। आराम-क्रीड़ा वाटिका, उद्यान-बगीचे, कुए, तालाब, बावड़ी, जल के छोटे-छोटे बाँध-इनसे युक्त है। नन्दनवन सी लगती है। वह ऊँची, विस्तीर्ण और गहरी खाई से युक्त है, चक्र गदा, भुसुंडि-पत्थर फेंकने का एक विशेष अस्त्र-गोफिया, अवरोध-अन्तर-प्रकार-शत्रु सेना को रोकने के लिए परकोटे जैसा भीतरी सुदृढ आवरक साधन, शतघ्नी-महायष्टि या महाशिला, जिसके गिराये जाने पर सैकड़ों व्यक्ति दब-कुचल कर मर जाएं और द्वार के छिद्र-रहित कपाट-युगल के कारण जहाँ प्रवेश कर पाना दुष्कर हो। धनुष जैसे टेढ़े परकोटे से वह घिरी हुई है। उस परकोटे पर गोल आकार के
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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