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प्रथम वक्षस्कार]
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में तथा कई देवगति में जाते हैं और कई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिर्वृत्त होते हैं एवं समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
विवेचन-दसवें सूत्र में भरतक्षेत्र की स्थाणु-बहुलता, कंटक-बहुलता, विषमता आदि का जो उल्लेख हुआ है, वह समग्र क्षेत्र के सामान्य वर्णन की दृष्टि से है। यहाँ रमणीय भूमिभाग का जो वर्णन है, वह स्थान-विशेष की दृष्टि से है। शुभाशुभात्मकतामूलक द्विविध स्थितियों की विद्यमानता से एक ही क्षेत्र में स्थान-भेद से द्विविधता हो सकती है, जो विसंगत नहीं है। अप्रिय और अमनोज्ञ स्थानों के आंतरिक्त पुण्यशील जनों के पुण्यभोगोपयोगी प्रिय और मनोज्ञ स्थानों का अस्तित्व संभावित ही है।
___ प्रस्तुत सूत्र में दक्षिणार्ध भरत के मनुष्यों के नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, देवगति तथा मोक्षप्राप्ति का जो वर्णन हुआ है, वह नानाविध जीवों को लेकर आरक-विशेष की अपेक्षा से है। वैताढ्य पर्वत
१२. कहि णं भंते. ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते ?
गोयमा ! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थ णंजंबुद्दीवेदीवे भरहे वासे वेअड्डे णाम पव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिपणे, दुहा लवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुढें, पणवीसं जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं छस्सकोसाइं जोअणाई उव्वेहेणं, पण्णासं जोअणाई विक्खंभेणं, तस्स बाहा पुरथिमपच्चस्थिमेणं चत्तारि अट्ठासीए जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभागे जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ता। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया, दुहा लवणसमुदं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्टा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, दस जोयणसहस्साइं सत्त य बीसे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभागे जोअणस्स आयामेणं, तीसे धणुपुढे दाहिणेणं दस जोअणसहस्साई सत्त या तेआले जोयणसए पण्णरस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुअगसंठाणसंठिए, सव्वरययामाए,अच्छे,सण्हे,लढे, घट्टे, मटे,णीरए, णिम्मले, णिप्पंके, णिक्कंकडच्छाए, सप्पभे, समिरीए, पासाईए, दरिसणिज्जे, अभिरूवे, पडिरूवे।
उभओ पासिंदोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि अवणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं वण्णओ भाणियव्वो।तेणं वणसंडा देसूणाईजोअणाई विक्खंभेणं, पउमवरवेइयासमगा आयामेणं, किण्हा, किण्होमासा जाव वण्णओ। . __ [१२] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य नामक पर्वत कहाँ कहा गया है ?
१. देखें सूत्र संख्या ६