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________________ सप्तम वक्षस्कार] [४०७ गोयमा ! णो इणढे समढे। से केणटेणं जाव २ विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइअखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहूईओ जिणसकहाओ सन्निखित्ताओ चिटुंति ताओ णं चंदस्स अण्णेसिंच बहूणं देवाण यदेवीण य अच्चणिज्जाओ पज्जवासणिज्जाओ, से तेणटेणं गोयमा ! णो पभुत्ति, पभू णं चंदे सभाए सुहम्माए चउहिं सामाणिअसाहस्सीहिं एवंजाव' दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परिआरिद्धीए, णो चेव णं मेहुणवत्ति। विजया १,वेजयंति २, जयंति ३,अपराजिआ५-सव्वेहिंगहाईणं एआओ अग्गमहिसीओ, छावत्तरस्सवि गहसयस्स एआओ अग्गमहिसीओ वत्तव्यओ, इमाहि गाहाहिति इंगालए विआलए लोहिअंके सणिच्छरे चेव। आहुणिए पाहुणिए कणगसणामा य पंचेव॥१॥ सोमे सहिए आसणे य कज्जोवए अकब्बरए। अयकरए दुंदुभए संखसनामेवि तिण्णेव॥२॥ एवं भाणियव्वं जाव भावकेउस्स अग्गमहिसीओ त्ति। १. देखें सूत्र संख्या १४२ २. देखें सूत्र संख्या १४२ ३. देखें सूत्र संख्या ८९ ४. तिण्णेव कंसनामा णील रुप्पि अ हवंति चत्तारि। भावतिलपुप्फवण्णे दग दगवण्णे य कायबधे य॥३॥ इंदग्गिधूमकेऊ हरिपिंगलए बुहे अ सुक्के अ। वहस्सइराहु अगत्थी माणवगे कामफासे अ॥४॥ धुरए पमुहे वियडे विसंधि कप्पे तहा पयल्ले य। जडियालए य अरुणे अग्गिलकाले महाकाले ॥५॥ सोत्थिअ सोवत्थिअए वद्धमाणग तहा पलंबे अ। णिच्चालीए णिच्चुज्जोए सयंपभे चेव ओभासे ॥६॥ सेयंकर-खेमंकर-आभंकर-पभंकरे अ णायव्वो। अरए विरए ण तहा असोग तह वीतसोगे य॥७॥ विमल-वितत्थ-विवत्थे विसास तह साल सुव्वए चेव। अनियट्टी एगजडी अ होइ विजडी य बोधव्वे॥८॥ कर-करिअ राय-अग्गल बोधव्वे पुष्फ भावकेऊअ। अट्ठासीई गहा खलु णायव्वा आणुपुव्वीए॥९॥ श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्रांक ५३४-३५
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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