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________________ ३५० ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गच्छन्ति, तं भंते ! किं उद्धं गच्छन्ति अहे गच्छन्ति तिरियं गच्छन्ति ? गोयमा ! उद्धपि गच्छन्ति, तिरिअंपि गच्छन्ति, अहेवि गच्छन्ति ।तं भंते ! किं आइं गच्छन्ति, मज्झे गच्छन्ति, पज्जवसाणे गच्छन्ति ? गोयमा ! आइंपि गच्छन्ति मज्झेवि गच्छन्ति पज्जवसाणेवि गच्छन्ति।तं भंते ! किं सविसयं गच्छन्ति, अविसयं गच्छन्ति ? गोयमा ! सविसयं गच्छन्ति, णो अविसयं गच्छन्ति। तं भंते ! किं आणुपुव्विं गच्छन्ति अणाणुपुव्विं गच्छन्ति ? गोयमा ! आणुपुट्विं गच्छन्ति णो अणाणुपुव्विं गच्छन्ति, तं भंते ! किं एगदिसिं गच्छन्ति छद्दिसिं गच्छन्ति ? गोयमा।) नियमा छद्दिसिंति, एवं ओभासेंति, तं भंते ! किं पुढे ओभासेंति ? एवं आहारपयाइं अव्वाइं पुट्ठोगाढमणंतरअणुमहआदिविसयाणुपुव्वी अ जाव णिअमा छद्दिसिं, एवं उज्जोवेंति, तवेंति पभासेंति ११। [१७०] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत-गतिविषयीकृत-पहले चले हुए क्षेत्र का-अपने तेज से व्याप्त क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या अनागत-भविष्यवर्ती-जिसमें गति की जाएगी उस-क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे अतीत क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते, वे वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। वे अनागत क्षेत्र का भी अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते है या अस्पर्शपूर्वक-स्पर्श नहीं करते हुए-अतिक्रमण करते हैं ? ___ गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं, स्पर्श नहीं करते हुए अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ़ कर-अधिष्ठित कर अतिक्रमण करते हैं या अनवगाढ कर-अनाश्रित कर अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ कर अतिक्रमण करते हैं, अनवगाढ कर अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का अनन्तरावगाढ-अव्यवधानाश्रित-व्यवधानरहित-अव्यवहित रूप में अतिक्रमण करते हैं या परम्परावगाढ-व्यवधानयुक्त-व्यवहित रूप में अतिक्रमण करते हैं ! गौतम ! वे उस क्षेत्र का अव्यवहित रूप में अवगाहन करके अतिक्रमण करते हैं, व्यवहित रूप में अवगाहन करके अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे अणुरूप-सूक्ष्म अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या बादररूप-स्थूल अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं । गौतम ! वे अणुरूप-सूक्ष्म अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं तथा बादररूप-स्थूल अनन्तरावगाढ क्षेत्र का भी अतिक्रमण करते हैं।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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