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________________ उल्लेख हुआ है, अन्य दों घटनाओं का उल्लेख नहीं है। अतः भरत ने चक्ररत्न का अभिवादन किया और अष्ट दिवसीय महोत्सव किया। चक्रवर्ती सम्राट् बनने के लिये चक्ररत्न अनिवार्य साधन है। यह चक्ररत्न देवाधिष्ठित होता है। एक हजार देव चक्ररत्न की सेवा करते हैं। यों चक्रवर्ती के पास चौदह रत्न होते हैं। यहाँ पर रत्न का अर्थ अपनी-अपनी • जातियों की सर्वोत्कृष्ट वस्तुएं हैं। ' चौदर रत्नों में सात रत्न एकेन्द्रिय और सात रत्न पंचेन्द्रिय होते हैं। आचार्य अभयदेव नें स्थानांगवृत्ति में लिखा है कि चक्र आदि सात रत्न पृथ्वीकाय के जीवों के शरीर से बने हुए होते हैं, अत: उन्हें एकेन्द्रिय कहा जाता है। आचार्य नेमिचन्द्र ने प्रवचनसारोद्धार ग्रन्थ में इन सात रत्नों का प्रमाण इस प्रकार दिया है । ' चक्र, छत्र और दण्ड ये तीनों व्याम तुल्य हैं। ' तिरछे फैलाये हुए दोनों हाथों की अंगुलियों के अन्तराल जितने बड़े होते हैं। चर्मरत्न दो हाथ लम्बा होता है । असिरत्न बत्तीस अंगुल, मणिरत्न चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा होता है। कागिणीरत्न की लम्बाई चार अंगुल होती है। जिस युग में जिस चक्रवर्ती की जितनी अवगाहना होती है, उस चक्रवर्ती के अंगुल का यह प्रमाण है। चक्रवर्ती की आयुधशाला में चक्ररत्न, छत्ररत्न, दण्डरत्न और असिरत्न उत्पन्न होते हैं । चक्रवर्ती के श्रीघर में चर्मरत्न, मणिरत्न और कागिणीरत्न उत्पन्न होते हैं । चक्रवर्ती की राजधानी विनीता में सेनापति, गृहपति, वर्द्धकि और पुरोहित ये चार पुरुषरत्न होते हैं । वैताढ्यगिरि की उपत्यका में अश्व और हस्ती रत्न उत्पन्न होते हैं। उत्तर दिशा की विद्याधर श्रेणी में स्त्रीरत्न उत्पन्न होता है।' आचार्य नेमीचन्द्र ने चौदह रत्नों की व्याख्या इस प्रकार की है ५ १. सेनापति-यह सेना का नायक होता है। गंगा और सिन्धु नदी के पार वाले देशों को यह अपनी भुजा के बल से जीतता है। २. गृहपति-यह चक्रवर्ती के घर की समुचित व्यवस्था करता है । जितने भी धान्य, फल और शाकसब्जियाँ हैं, उनका यह निष्पादन करता है। ३. पुरोहित-गृहों को उपशान्ति के लिये उपक्रम करता है। ४. हस्ती-यह बहुत ही पराक्रमी होता है और इसकी गति बहुत वेगवती होती है। ५. अश्व-यह बहुत ही शक्तिसम्पन्न और अत्यन्त वेगवान् होता है। ६. वर्द्धकि-यह भवन आदि का निर्माण करता है। जब चक्रवर्ती दिग्विजय के लिये तमिस्रा गुफा में से जाते हैं उस समय उन्मग्नजला और निमग्नजला इन दो नदियों को पार करने के लिये सेतु का निर्माण करता है, जिन पर से चक्रवर्ती की सेना नदी पार करती है। १. रबानि स्वजातीयमध्ये समुत्कर्षवन्ति वस्तूनीति-समवायाङ्ग वृत्ति, पृ. २७ प्रवचनसारोद्धार गाथा १२१६-१२१७ । चक्रं छत्रं.....पुंसस्तिर्यग्रहस्तद्वयांगुलयोरंतरालम् । -प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, पत्र ३५१ भरहस्स णं रन्नो........उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पन्ने। ५. प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, पत्र ३५०-३५१ -आवश्यकचूर्णि पृ. २०८ [३७]
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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