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________________ में कुशलता प्राप्त की थी इसलिये अयोध्या को 'कौशला' भी कहते हैं। अयोध्या में जन्म लेने के कारण भगवान् ऋषभदेव कौशलीय कहलाये थे। रामायण काल में अयोध्या बहुत ही समृद्ध नगरी थी। वास्तुकला की दृष्टि से यह महानगरी बहुत ही सुन्दर बसी हुई थी। इस नगर में कम्बोजीय अश्व और शक्तिशाली हाथी थे।' महाभारत में इस नगरी को पुण्यलक्षणा या शुभलक्षणों वाली चित्रित किया गया है। ऐतरेय ब्राह्मण २ आदि में इसे एक गाँव के रूप में चित्रित किया है। आवश्यकनियुक्ति में इस नगरी का दूसरा नाम साकेत और इक्ष्वाकु भूमि भी लिखा है। ३ विविध तीर्थकल्प में रामपुरी और कौशल ये दो नाम और भी दिये हैं। भागवतपुराण में अयोध्या का उल्लेख एक नगर के रूप में किया है। ५ स्कन्ध पुराण के अनुसार अयोध्या मत्स्याकार बसी हुई थी। उसके अनुसार उसका विस्तार पूर्व-पश्चिम में एक योजन, सरयू से दक्षिण में तथा तमसा से उत्तर में एक-एक योजन है। कितने ही विज्ञों का यह अभिमत रहा कि साकेत और अयोध्या-ये दोनों नगर एक ही थे। पर रिज डेविड्स ने यह सिद्ध किया कि ये दोनों नगर पृथक्-पृथक् थे और तथागत बुद्ध के समय अयोध्या और साकेत ये दोनों नगर थे। ' हिन्दुओं के सात तीर्थों में अयोध्या का भी एक नाम है। . चीनी यात्री फाह्यान जब अयोध्या पहुंचा तो उसने वहाँ पर बौद्धों और ब्राह्मणों में सौहार्द्र का अभाव देखा। 'दूसरा चीनी यात्री ह्वेनसांग जो सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत आया था, उसने छह सौ ली से भी अधिक यात्रा की थी। वह अयोध्या पहुंचा था। उसने अयोध्या को ही साकेत लिखा है। उस समय अयोध्या वैभवसम्पन्न थी। फलों से बगीचे लदे हुए थे। वहाँ के निवासी सभ्य और शिष्ट थे। उस समय वहाँ पर सौ से भी अधिक बौद्ध विहार थे और तीन हजार (३०००) से भी अधिक भिक्षु वहाँ पर रहते थे। वे भिक्षु महायान और हीनयान के अनुयायी थे। वहाँ पर एक प्राचीन विहार था, जहाँ पर वसुबन्धु नामक एक महामनीषी भिक्षु था। वह बाहर से आने वाले राजकुमारों और भिक्षुओं को बौद्ध धर्म और दर्शन का अध्ययन कराता था। अनेक ग्रन्थों की रचना भी उन्होंने की थी। वसुबन्धु महायान को मानने वाले थे और उसी के मण्डन में उनके ग्रन्थ लिखे हुए हैं । तिरासी वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हुआ था। अयोध्या में अनेक वरिष्ठ राजा हुए हैं। समय-समय पर राज्यों का परिवर्तन भी होता रहा. यह मर्यदा पुरुषोत्तम राम और राजा सगर की भी राजधानी रही। कनिंघम के अनुसार इस नगर का विस्तार बारह योजन अथवा सौ मील का था, जो लगभग २४ मील तक बगीचों और उपवनों से घिरा था। ११ कनिंघम के अनुसार रामायण पृ. ३०९, श्लोक २२ से २४ (क) ऐतरेय ब्राह्मण VII, ३ और आगे (ख) सांख्यायनसूत्र XV, १७ से २५ ३. आवश्यकनियुक्ति ३८२ विविध तीर्थकल्प पृ. २४ ५. भागवतपुराण IX, ८।१९ स्कन्धपुराण अ. १, ६४,६४ बि. च. लाहा, ज्याँग्रेफी ऑव अर्ली बुद्धिज्म, पृ.५ लेग्गे, ट्रैवल्स ऑव फाह्यान, पृ.५४-५५ ९. वाटर्स, आन युवान च्वाङ्, I, ३५४-९ १०. हिस्टारिकिल ज्योग्राफी ऑप ऐंसियण्ट इंडिया, पृ.७६ ११. कनिंघम, ऐंसियंट ज्योग्राफी ऑफ इंडिया, प. ४५९-४६० و نی [३५]
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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