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________________ २७८ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र रम्यकवर्ष १४०. कहि णं भंते ! जम्बूद्दीवे २ रम्मए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणिअव्वं, णवरं दक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धणुं अवसेसं तं चेव। कहि णं भंते ! रम्मए वासे गन्धावाईणामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णरकन्ताए पच्चत्थिमेणं, णारीकन्ताए पुरत्थिमेणं रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं गन्धावाईणामं वट्टवेअद्धे पव्वए पण्णत्ते, जं चेव विअडावइस्स तं चेव गन्धावइस्सवि वत्तव्वं, अट्ठो बहवे उप्पलाइंजाव गंधावईवण्णाइं गन्धावईप्पभाई पउमे अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ, रायहाणी उत्तरेणन्ति। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ रम्मए वासे २ ? गोयमा ! रम्मगवासे णं रम्मे रम्मए रमणिज्जे , रम्मए अ इत्थ देवे जाव परिवसइ, से तेणटेणं। _ [१४०] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत रम्यक नामक क्षेत्र बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में रम्यक नामक क्षेत्र बतलाया गया है। उसका वर्णन हरिवर्ष क्षेत्र जैसा है। इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी का वर्णन उसी (हरिवर्ष) के सदृश है। __ भगवन् ! रम्यक क्षेत्र में गन्धापाती नामक वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नरकान्ता नदी के पश्चिम में, नारीकान्ता नदी के पूर्व में रम्यक क्षेत्र के बीचों बीच गन्धापाती नामक वृत्तवैताढ्य पर्वत बतलाया गया है। विकटापाती वृत्तवैताढ्य का जैसा वर्णन है, वैसा ही इसका है। गन्धापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत पर उसी के सदृश वर्णयुक्त, आभायुक्त अनेक उत्पल, पैद्म आदि हैं। वहाँ परम ऋद्धिशाली पल्योपम आयुष्य युक्त पद्म नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी उत्तर में है। भगवन् ! वह (उपर्युक्त) क्षेत्र रम्यकवर्ष नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! रम्यकवर्ष सुन्दर, रमणीय है एवं उसमें रम्यक नामक देव निवास करता है, अतः वह रम्यकवर्ष कहा जाता है। १. देखें सूत्र संख्या १४ २. देखें सूत्र संख्या १४ ३. देखें सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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