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________________ २७४] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र शिला बतलाई गई है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बी है, पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है। वह सर्वथा तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है । उसके उत्तर-दक्षिण दो सिंहासन बतलाये गये हैं। उनमें जो दक्षिणी सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति आदि देव-देवियों द्वारा पक्ष्मादिक विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। वहाँ जो उत्तरी सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति आदि देवों द्वारा वप्र आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। भगवन् ! पण्डकवन में रक्तकम्बलशिला नामक शिला कहाँ बतलाई गई है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के उत्तर में, पण्डकवन के उत्तरी छोर पर रक्तकम्बलशिला नामक शिला बतलाई गई है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी है, सम्पूर्णतः तपनीय स्वर्णमय तथा उज्ज्वल है। उसके बीचोंबीच एक सिंहासन है। वहाँ भवनपति आदि बहुत से देव-देवियां द्वारा ऐरावतक्षेत्र में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। मन्दर पर्वत के काण्ड १३७. मन्दरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कइ कंडा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ कंडा पण्णत्ता, तं जहा-हिट्ठिल्ले कंडे १, मज्झिमिल्ले कंडे २, उवरिल्ले कंडे ३। मन्दरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हिट्ठिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पुढवी १, उवले २, वइरे. ३, सक्करे ४। मज्झिमिल्ले णं भंते ! कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! चउविहे पण्णत्ते , तं जहा-अंके १, फलिहे २, जायरूवे ३, रयए ४। उवरिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते, सव्वजम्बूणयामए। मन्दरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे केवइअं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोअणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते। मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा, गोयमा ! तेवढि जोअणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। उवरिल्ले पुच्छा, गोयमा ! छत्तीसं जोअणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। एवामेव सपुव्वावरेणं मन्दरे पव्वए एगं जोअणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते। [१३७] भगवन् ! मन्दर पर्वत के कितने काण्ड-विशिष्ट परिमाणानुगत विज्छेद-पर्वत क्षेत्र के विभाग बतलाये हैं ? गौतम ! उसके तीन विभाग बतलाये गये हैं-१. अधस्तनविभाग-नीचे का विभाग, २. मध्यमविभाग
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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