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________________ २२६ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उनकी परिधि ३७९५ योजन है। वे आधा कोस मोटी हैं। वे सम्पूर्णतः उत्तम जम्बूनद जातीय स्वर्णमय हैं, उज्ज्वल हैं। उनमें से प्रत्येक एक-एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक-एक वन-खण्ड द्वारा परिवेष्टित है। वन-खण्ड, त्रिसोपानक, चारों दिशाओं में चार तोरण, भूमिभाग आदि से सम्बद्ध वर्णन पूर्ववत् है। उसके बीचोंबीच एक उत्तम प्रासाद है। वह ६२१), योजन ऊँचा है। वह ३१ योजन १ कोश लम्बाचौड़ा है। उसके ऊपर के हिस्से, भूमिभाग-नीचे के हिस्से, सम्बद्ध सामग्री सहित सिंहासन, प्रासादपंक्तियाँ-मुख्य प्रासाद को चारों ओर से परिवेष्टित करनेवाली महलों की कतारें इत्यादि अन्यत्र वर्णित हैं, ज्ञातव्य हैं। प्रासाद पंक्तियों में से प्रथम पंक्ति के प्रासाद ३१ योजन १ कोश ऊँचे हैं। वे कुछ अधिक १५५, योजन लम्बे-चौड़े हैं। द्वितीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक १५/, योजन ऊँचे हैं। वे कुछ अधिक ७१), योजन लम्बेचौड़े हैं। तृतीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक ७१), योजन ऊँचे हैं, कुछ अधिक ३१), योजन लम्बे-चौड़े हैं। सम्बद्ध सामग्री युक्त सिंहासनपर्यन्त समस्त वर्णन पूर्ववत् है। मूल प्रासाद के उत्तर-पूर्व दिशाभाग में ईशानकोण में यमक देवों की सुधर्मा सभाएँ बतलाई गई हैं । वे सभाएँ १२१), योजन लम्बी, ६ योजन १ कोश चौड़ी तथा ९ योजन ऊँची हैं । सैकड़ों खंभों पर अवस्थित हैं-टिकी हैं। उन सुधर्मा सभाओं की तीन दिशाओं में तीन द्वार बतलाये गये हैं। वे द्वार दो योजन ऊँचे हैं, एक योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश-मार्गों का प्रमाण-विस्तार भी उतना ही है। वनमाला पर्यन्त आगे का सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। उन द्वारों में से प्रत्येक के आगे मुख-मण्डप-द्वाराग्रवर्ती मण्डप बने हैं। वे साढ़े बारह योजन लम्बे, छह योजन एक कोश चौड़े तथा कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं। द्वार तथा भूमिभाग पर्यन्त अन्य समस्त वर्णन पूर्वानुरूप है। मुख-मण्डपों के आगे अवस्थित प्रेक्षागृहों-नाट्यशालाओं का प्रमाण मुखमण्डपों के सदृश है। भूमिभाग, मणिपीठिका आदि पूर्व वर्णित हैं । मुख-मण्डलों में अवस्थित मणिपीठिकाएँ १ योजन लम्बी-चौड़ी तथा आधा योजन मोटी हैं। वे सर्वथा मणिमय हैं। वहाँ विद्यमान सिंहासनों का वर्णन पूर्ववत् है। प्रेक्षागृह-मण्डपों के आगे जो मणिपीठिकाएँ हैं, वे दो योजन लम्बी-चौड़ी तथा एक योजन मोटी हैं। वे सम्पूर्णतः मणिमय हैं। उनमें से प्रत्येक पर तीन-तीन स्तूप-स्मृति-स्तंभ बने हैं। वे स्तूप दो योजन ऊँचे हैं, दो योजन लम्बे-चौड़े हैं, वे शंख की ज्यों श्वेत हैं। यहाँ आठ मांगलिक पदार्थों तक का वर्णन पूर्वानुरूप है। उन स्तूपों की चारों दिशाओं में चार मणिपीठिकाएँ हैं। वे मणिपीठिकाएँ एक योजन लम्बी-चौड़ी तथा आधा योजन मोटी हैं। वहाँ स्थित जिन-प्रतिमाओं का वर्णन पूर्वानुरूप है।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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