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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२०१ बाकी के कूटों का आयाम-विस्तार, परिधि, प्रासाद, देव, सिंहासन, तत्सम्बद्ध सामग्री, देवों एवं देवीयों की राजधानियों आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। इन कूटों में से चुल्लहिमवान्, भरत, हैमवत तथा वैश्रमण कूटों में देव निवास करते है और उनके अतिरिक्त अन्य कूटों में देवियाँ निवास करती हैं। भगवन् ! वह पर्वत चुल्लहिमवान्वर्षधर किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! महाहिमवान्वर्षधर पर्वत की अपेक्षा चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत आयाम-लम्बाई, उच्चत्वऊँचाई, उद्वेध-जमीन में गहराई, विष्कम्भ-विस्तार-चौड़ाई, तथा परिक्षेप–परिधि या घेरा-इनमें क्षुद्रतर, ह्रस्वतर तथा निम्नतर है-न्यूनतर है, कम है। इसके अतिरिक्त वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त चुल्लहिमवान् नामक देव निवास करता है, गौतम ! इस कारण वह चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत कहा जाता गौतम ! अथवा चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत-यह नाम शाश्वत कहा गया है, जो न कभी नष्ट हुआ, न कभी नष्ट होगा। हैमवत वर्ष ९३. कहि णं भंते ! जम्बूद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! महाहिमवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवन्तस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरस्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणंएत्थणंजम्बूद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते। पाइणपडीणायए, उदीणदाहिणविच्छिण्णे, पलिअंकसंठाणसंठिए, दुहा लवणसमुदं पुढे, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, पच्चत्थिमिल्लाए, कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुहं पुढे। दोण्णि जोअणसहस्साइं एगं च पंचुत्तरं जोअणसयं पंच य एगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं छज्जोअणसहस्साइं सत्त य पणवण्णे जोअणसए तिण्णि अ एगूणवीसइ भाए जोअणस्स आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया, दुहओ लवणसमुदं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्ललवणसमुदं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लाए (कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं) पुट्ठा।सत्ततीसं जोअणसहस्साई छच्च चउवत्तरे जोअणसए सोलस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स किंचिविसेसूणे आयांमेणं। तस्स धणुं दाहिणेणं अद्भुतीसं जोअणसहस्साइं तस्स य चत्ताले जोअणसए दस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं। हेमवयस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, एवं तइयसमाणुभावो णेअव्वोत्ति। [९३] भगवन् ! जम्बूद्वीप में हैमवत क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है ? गोयमा ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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