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आगमसाहित्य में यत्र-तत्र इस प्रकार की शब्दावलियाँ प्रयुक्त हुई हैं, इससे यह स्पष्ट है कि आगम के अर्थ के प्ररूपक तीर्थंकर हैं, पर सूत्र की रचना या अभिव्यक्ति की जो शैली है, वह गणधरों की या स्थविरों की है। गणधर या स्थविर अपनी कमनीय कल्पना का सम्मिश्रण उसमें नहीं करते, वे तो केवल भाव को भाषा के परिधान से समलंकृत करते हैं। नन्दीसूत्र में कहा गया है कि जैनागम तीर्थंकर-प्रणीत हैं, इसका तात्पर्य केवल इतना ही है कि अर्थात्मक आगम के प्रणेता तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर की वीतरागता और सवार्थसाक्षात्कारिता के कारण ही आगम प्रमाण माने गये हैं।
___ आचार्य देववाचक ने आगमसाहित्य को अंग और अंगबाह्य, इन दो भागों में विभक्त किया है। अंगों की सूत्ररचना करने वाले गणधर हैं तो अंगबाह्य की सूत्ररचना स्थविर भगवन्तों के द्वारा की गई है । स्थविर सम्पूर्ण श्रुतज्ञानी चतुर्दशपूर्वी या दशपूर्वी-दो प्रकार के होते हैं। अंग स्वत: प्रमाण रूप हैं, पर अंगबाह्य परतः प्रमाण रूप होते हैं । दश पूर्वधर नियमतः सम्यग्दर्शी होते हैं। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में अंग विरोधी तथ्य नहीं होते, अत: वे आगम प्रमाण रूप माने जाते हैं। अंगबाह्य आगमों की सूची में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का कालिक श्रुत की सूची में आठवाँ स्थान है। जब आगमसाहित्य का अंग, उपांग, मूल और छेद रूप में वर्गीकरण हुआ तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का उपांग में पांचवां स्थान रहा और इसे भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र का उपांग माना गया है। भगवतीसूत्र के साथ प्रस्तुत उपांग का क्या सम्बन्ध है ? इसे किस कारण भवगती का उपांग कहा गया है ? यह शोधार्थियों के लिए चिन्तनीय प्रश्न है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में एक अध्ययन है और सात वक्षस्कार हैं। यह आगम पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध इन दो भागों में विभक्त है। पूर्वार्द्ध में चार वक्षस्कार हैं तो उत्तरार्द्ध में तीन वक्षस्कार हैं। वक्षस्कार शब्द यहां पर प्रकरण के अर्थ में व्यवहत हुआ है, पर वस्तुतः जम्बूद्वीप में इस नाम के प्रमुख पर्वत हैं, जिनका जैन भूगोल में अनेक दृष्टियों से महत्त्व प्रतिपादित है। जम्बूद्वीप से सम्बद्ध विवेचन के सन्दर्भ में ग्रन्थकार प्रकरण का अवबोध कराने के लिए ही वक्षस्कार शब्द का प्रयोग करते हैं । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के मूल-पाठ का श्लोक-प्रमाण ४१४६ है। १७८ गद्य सूत्र हैं और ५२ पद्य सूत्र हैं। जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग दूसरे में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को ६ठा उपांग लिखा है। जब आगमों का वर्गीकरण अनुयोग की दृष्टि से किया गया तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को गणितानुयोग में सम्मिलित किया गया, पर गणितानुयोग के साथ ही उसमें धर्मकथानुयोग आदि भी हैं। मिथिला : एक परिचय
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का प्रारम्भ मिथिला नगरी के वर्णन से हुआ है, जहाँ पर श्रमण भगवान् महावीर अपने अन्तेवासियों के साथ पधारे हुए हैं। उस समय वहाँ का अधिपति राजा जितशत्रु था। बृहत्कल्पभाष्य ' में साढ़े पच्चीस आर्य क्षेत्रों का वर्णन है। उसमें मिथिला का भी वर्णन है। मिथिला विदेह जनपद की राजधानी थी। ' विदेह राज्य की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडकी और पूर्व में महीनदी तक थी। जातक की दृष्टि से इस राष्ट्र का विस्तार ३०० योजन था उसमें सोलह सहस्र गांव थे। यह देश और राजधानी दोनों का ही नाम
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बृहत्कल्पभाष्य १.३२७५-८९ (क) महाभारत वनपर्व २५४ (ख) महावस्तु दृढ १७२ (ग) दिव्यावदान पृ. ४२४ सुरुचि जातक (सं. ४८९) भाग ४, पृ.५२१-५२२ जातक (सं. ४०६) भाग ४, पृ. २७
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