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________________ १३६ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र आना, आकाश में बार-बार भूत-प्रेतों का नाचना आदि सैकड़ों उत्पात प्रकट हुए हैं। देवानुप्रियो ! न मालूम हमारे देश में कैसा उपद्रव होगा। वे उन्मनस्क-उदास हो गये। राज्य-भ्रंश, धनापहार आदि की चिन्ता से उत्पन्न शोकरूपी सागर में डूब गये-अत्यन्त विषादयुक्त हो गये। अपनी हथेली पर मुंह रखे वे आर्तध्यान में ग्रस्त हो भूमि की ओर दृष्टि डाले सोच विचार में पड़ गये। ___ तब राजा भरत (जो हजारों राजाओं से युक्त था, समुद्र के गर्जन की ज्यों उच्च स्वर से सिंहनाद करता हुआ) चक्ररत्न द्वारा निर्देशित किए जाते मार्ग के सहारे तमिस्रा गुफा के उत्तरी द्वार से इस प्रकार निकला, जैसे बादलों के प्रचुर अन्धकार को चीरकर चन्द्रमा निकलता है। आपात किरातों ने राजा भरत की सेना के अग्रभाग को जब आगे बढ़ते हुए देखा तो वे तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल तथा कुपित होते हुए, मिसमिसाहट करते हुए-तेज सांस छोड़ते हुए, आपस में कहने लगे-देवानुप्रियो ! अप्रार्थित-जिसे कोई नहीं चाहता, उस मृत्यु को चाहने वाला, दुःखद अन्त एवं अशुभ लक्षण वाला, पुण्य चतुर्दशी जिस दिन हीन-असम्पूर्ण थी-घटिकाओं में अमावस्या आ गई थी, उस अशुभ दिन में जन्मा हुआ, अभागा, लज्जा, शोभा से परिवर्जित वह कौन है, जो हमारे देश पर बलपूर्वक जल्दी-जल्दी चढ़ा आ रहा है। देवानुप्रियो ! हम उसकी सेना को तितर-बितर कर दें, जिससे वह हमारे देश पर बलपूर्वक आक्रमण न कर सके। इस प्रकार उन्होंने आपस में विचार कर अपने कर्त्तव्य का-आक्रान्ता का मुकाबला करने का निश्चय किया। वैसा निश्चय कर उन्होंने लोहे के कवच धारण किये, वे युद्धार्थ तत्पर हुए, अपने धनुषों पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उन्हें हाथ में लिया, गले पर ग्रैवेयक-ग्रीवा की रक्षा करने वाले संग्रामोचित उपकरण विशेष बाँधे-धारण किये, विशिष्ट वीरता सूचक चिह्न के रूप के उज्ज्वल वस्त्र-विशेष मस्तक पर बाँधे। विविध प्रकार के आयुध-क्षेप्य-फेंके जाने वाले बाण आदि अस्त्र तथा प्रहरण-अक्षेप्य-नहीं फेंके जाने वाले हाथ द्वारा चलाये जाने वाले तलवार आदि शस्त्र धारण किये। वे, जहाँ राजा भरत की सेना का अग्रभाग था-सेना की अगली टुकड़ी थी, वहां पहुंचे। वहां पहुंचकर वे उससे भिड़ गये। उन आपात किरातों ने राजा भरत के कतिपय विशिष्ट योद्धाओं को मार डाला, मथ डाला, घायल कर डाला, गिरा डाला। उनकी गरुड आदि चिह्नों से युक्त ध्वाजाएँ, पताकाएँ नष्ट कर डाली। राजा भरत की सेना के अग्रभाग के सैनिक बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाकर इधर-उधर भाग छूटे। । आपात किरातों का पलायन ७३. तए णं से सेणाबलस्स णेआवेढो (सण्णद्धबद्धवम्मियकवअंउप्पीलिअसरासणपट्टिअंपिणद्धगेविजं बद्ध-आविद्धविमलवरचिंधपटुंगहिआउहप्पहरणं भरहस्स रण्णो अग्गाणीअं आवाडचिलाएहिं हय-महिय-पवर-वीर-(घाइअविवडिअचिंधद्धयपडागं किच्छप्पा-णीवगयं) दिसोदिसं पडिसेहिअंपासइ रत्ता आसुरुत्ते रुढे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरूहइ २त्ता तए णं तं असीइमंगुलमूसिअंणवणउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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