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________________ ९६ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र प्रणाम किया। वैसा कर आयुधशाला के अधिपति को अपने मुकुट के अतिरिक्त सारे आभूषण दान में दे दिये। उसे जीविकोपयोगी विपुल प्रीतिदान दिया-जीवन पर्यन्त उसके लिए भरण-पोषणानुरूप आजीविका की व्यवस्था बाँधी, उसका सत्कार किया, सम्मान किया। उसे सत्कृत, सम्मानित कर वहाँ से विदा किया। वैसा कर वह राजा पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर बैठा।। ५४. तए णं भरहे राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयं रायहाणिं सभिंतरबाहिरियं आसियसंमज्जियसित्तसुइगरत्थंतरवीहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहरागवसणऊसियझयपडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरसरत्तचंदणकलसं, चंदणघडसुकय-(तोरणपडिदुवारदेसभायं, आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्गारियमल्लदामकलावं, पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं, कालागुरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमघंत-) गंधुद्धयाभिरामं, सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह; करेत्ता, कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाह । तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट करयल जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता भरहस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणिं (सब्भिंतरबाहिरियं आसियसंमज्जियसित्तसुइगरत्थंतरवीहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहरागवसणऊसियझयपडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरसरत्तचंदणकलसं, चंदणघडसुकय जाव गंधुद्धभिरामं, सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेइ, कारवेइ,) करेत्ता, कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। [५४] तत्पश्चात् राजा भरत ने कौटुम्बिक पुरुषों को व्यवस्था से सम्बद्ध अधिकारियों को बुलाया, बुलाकर उन्हें कहा-देवानुप्रियो ! राजधानी विनीता नगरी की भीतर और बाहर से सफाई कराओ, उसे सम्मार्जित कराओ, सुगंधित जल से उसे आसिक्त कराओ-सुगंधित जल का छिड़काव कराओ, नगरी की सड़कों और गलियों को स्वच्छ कराओ, वहाँ मंच, अतिमंच-विशिष्ट या उच्च मंच-मंचों पर मंच निर्मित कराकर उसे सज्जित कराओ, विविध रंगों में रंगे वस्त्रों से निर्मित ध्वजाओं, पताकाओं-छोटी-छोटी झंडियों, अतिपताकाओं-बड़ी-बड़ी झंडियों से उसे सुशोभित कराओ, भूमि पर गोबर का लेप कराओ, गोशीर्ष एवं सरस-आर्द्र लाल चन्दन से सुरभित करो, उसके प्रत्येक द्वारभाग को चंदनकलशों-चंदनचर्चित मंगलघटों और तोरणों से सजाओ, नीचे-ऊपर बड़ी-बड़ी गोल तथा लम्बी पुष्पमालाएँ वहाँ लटकाओ, पांचों वर्ण से के सरस, सुरभित फूलों के गुलदस्तों से उसे सजाओ, काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहां के वातावरण को रमणीय सुरभिमय बनाओ, जिससे) सुगंधित धुंए की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बनते दिखाई दें। ऐसा कर आज्ञा पालने की सूचना करो। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर व्यवस्थाधिकारी बहुत हर्षित एवं प्रसन्न हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर 'स्वामी की जैसी आज्ञा' यों कहकर उसे-शिरोधार्य किया, शिरोधार्य कर राजा भरत के पास से रवाना हुए, १. देखें सूत्र यही
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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