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द्वितीय वक्षस्कार ]
तदनन्तर देवराज, देवेन्द्र शक्र ने भवनपति एवं वैमानिक आदि देवों को यथायोग्य यों कहादेवानुप्रियो ! तीन सर्व रत्नमय विशाल स्तूपों का निर्माण करो - एक भगवान् तीर्थंकर के चिता-स्थान पर, एक गणधरों के चिता-स्थान पर तथा एक अवशेष अनगारों के चिता-स्थान पर। उन बहुत से ( भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक) देवों ने वैसा ही किया ।
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फिर उन अनेक भवनपति, वैमानिक आदि देवों ने तीर्थंकर भगवान् का परिनिर्वाण महोत्सव मनाया। ऐसा कर वे नन्दीश्वर द्वीप में आ गये । देवराज, देवेन्द्र शक्र ने पूर्व दिशा में स्थित अंजनक पर्वत पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। देवराज, देवेन्द्र शक्र के चार लोकपालों ने चारों दधिमुख पर्वतों पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। देवराज ईशानेन्द्र ने उत्तरदिशावर्ती अंजनक पर्वत पर अष्टदिवसीय परिनिर्वाणमहोत्सव मनाया। उसके लोकपालों ने चारों दधिमुख पर्वतों पर अष्टाह्निक परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। चमरेन्द्र ने दक्षिण दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर, उसके लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर परिनिर्वाण - महोत्सव मनाया। बलि ने पश्चिम दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर और उसके लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर परिनिर्वाणमहोत्सव मनाया। इस प्रकार बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर आदि ने अष्टदिवसीय महोत्सव मनाये। ऐसा कर वे जहाँ-तहाँ अपने विमान, भवन, सुधर्मा सभा तथा अपने माणवक नामक चैत्यस्तंभ थे, वहां आये । आकर जिनेश्वर देव की डाढ आदि अस्थियों को वज्रमय- - हीरों से निर्मित गोलाकार समुद्गक - भाजन- विशेष - डिबियाओं में रखा। रखकर अभिनव, उत्तम मालाओं तथा सुगन्धित द्रव्यों से अर्चना की । अर्चना कर अपने विपुल सुखोपभोगमय जीवन में घुलमिल गये ।
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अवसर्पिणी : दुःषम - सुषमा
४४. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव' परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समा काले पडिवज्जिसु समणाउसो ! तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' मणीहिं उसोभए, तंजहा - कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव ।
तीणं भंते! समाए भरहे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ?
गोयमा ! तेसिं मणुआणं छव्विहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूइं धणूई उद्धं उच्चत्तेणं, जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउअं पालेंति । पालित्ता अप्पेगइआ णिरयगामी, (अप्पेगइआ तिरियगामी, अप्पेगइआ मणुयगामी, अप्पेगइया) देवगामी, अप्पेगइआ सिज्झंति, बुज्झति, (मुच्यंति, परिणिव्वायंति), सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
समात वंसा समुप्पज्जित्था, तंजहा - अरहंतवंसे, चक्कवट्टिवसे, दसारवंसे ।
१. देखें सूत्र - संख्या २८ २. देखें सूत्र - संख्या ६