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________________ आप अखिल भारतीय जैन समाज के सुप्रतिष्ठित अग्रगण्य नेताओं में से एक थे। आप निष्पक्ष एवं सम्प्रदायवाद से परे एक निराले व्यक्तित्व के धनी थे । इसीलिए समग्र सन्त एवं श्रावकसमाज आपको एक दृढधर्मी श्रावक के रूप में जानता व आदर देता था । आप जैन शास्त्रों एवं तत्त्वों / सिद्धान्तों के ज्ञाता थे। आप सन्त सतियों का चातुर्मास कराने में सदैव अग्रणी रहते थे और उनकी सेवा का लाभ बराबर लेते रहते थे । इस तरह धार्मिक क्षेत्र में आपका अपूर्व योगदान रहा। इसी तरह नेत्रहीन अपंग रोगग्रस्त, क्षुधापीड़ित, आर्थिक स्थिति से कमजोर बन्धुओं को समय-समय पर जाति-पाँति के भेदभाव से रहित होकर अर्थ - सहयोग प्रदान किया । इस प्रकार शिक्षणक्षेत्र में, चिकित्साक्षेत्र में, जीवदया के क्षेत्र में, धार्मिक क्षेत्र में एवं मानव-सहायता आदि हर सेवा के कार्य में तन-मन-धन से आपने यथासम्भव सहयोग दिया। ऐसे महान् समाजसेवी, मानवता के प्रतीक को खोकर भारत का सम्पूर्ण मानवसमाज दुःख की अनुभूति कर रहा है। आप चिरस्मरणीय बनें, जन-जन आपके आदर्श जीवन से प्रेरणा प्राप्त करे, आपकी आत्मा चिरशांति को प्राप्त करे; हम यही कामना करते हैं। * श्रीमान् भँवरलालजी सा. गोठी, मद्रास के सौजन्य से [१०] -मन्त्री
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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