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[तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [१७४५ उ.] गौतम! उसे नारक भी बांधता है यावत् देवी भी बांधती है। १७४६. केरिसए णं भंते! णेरइए उक्कोसकालठितीयं णाणावरणिज कम्मं बंधइ ?
गोयमा! सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्ते सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छादिट्ठी कण्हलेसे उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे ईसिमझिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! णेरइए उक्कोस-कालठितीयं णाणावरणिजं कम्मं बंधइ।
[१४७४६ प्र.] भगवन्! किस प्रकार का नारक उत्कृष्ट स्थिति वाला ज्ञनावरणीयकर्म बांधता है ? __ [१७४६ उ.] गौतम! जो संज्ञीपंचेन्द्रिय, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला, जाग्रत, श्रुत में उपयोगवान्, मिथ्यादृष्टि, कृष्णलेश्यावान्, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला अथवा किञ्चित् मध्यम परिणाम वाला हो, ऐसा नारक, हे गौतम! उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है।
१७४७. [१] केरिसए णं भंते! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीय णाणावरणिज्जं कम्मं बंधइ?
गोयमा! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी पंचेंदिए सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तए, सेसं तं चेव जहा णेरइयस्स।
[१७४७-१ प्र.] भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यञ्च उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता
[१७४७-१ उ.] गौतम! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिज के सदृश हो, संज्ञीपंचेन्द्रिय, सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला, जाग्रत, श्रुत में उपयोगवान् मिथ्यादृष्टि, कृष्णलेश्यावान्, एवं उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला हो तथा किञ्चित् मध्यम परिणाम वाला हो, हे गौतम! इसी प्रकार का तिर्यञ्च उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है।
[२] एवं तिरिक्खजोणिणी वि, मणूसे वि मणूसी वि। देव-देवी जहा णेरइए (सु. १७४६ )।
[१७४७-२] इसी प्रकार की (पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त) तिर्यञ्चनी भी मनुष्य, और मनुष्यस्त्री भी उत्कृष्ट स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधती है (पूर्वोक्त विशेषण युक्त) (सू. १७४६ में उक्त) नारक के सदृश देव और देवी (उत्कृष्ट ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं।)
१७४८. एवं आउअवजाणं सत्तण्हं कम्माणं। ___ [१७४८] आयुष्य को छोड़कर शेष (उत्कृष्ट स्थिति वाले) सात कर्मों के बन्ध के विषय में पूर्ववत् जानना चाहिए।
१७४९. उक्कोसकालठितीयं णं भंते! आउअं कम्मं कि णेरइओ बंधइ जाव देवी बंधइ ? गोयमा! णो णेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, णो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो वि बंधइ,