________________
७६]
[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] जहण्णठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहण्णे।एवं एतेणं अभिलावेणं मोहाऽऽउअवजाणं सेसकम्माणं भाणियव्वं।
[१७४२ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक (बांधने वाला) कौन है ?
[१७४२ उ.] गौतम! वह अन्यतर (कोई एक) सूक्ष्मसम्पराय, उपशामक (उपशमश्रेणी वाला) या क्षपक (क्षपकश्रेणी वाला) होता है। हे गौतम! यही ज्ञानावरणीयकर्म का जघन्य स्थिति बन्धक होता है, उससे अतिरिक्त अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है। इस प्रकार इस अभिलाप से मोहनीय और आयुकर्म को छोड़ कर शेष कर्मों के विषय में कहना चाहिए।
१७४३.मोहणिजस्स णं भंते! कम्मस्स जहण्णठितिबंधए के ?
गोयमा! अण्णयरं बायरसंपराए उवसामए वा खवए वा, एस णं गोयमा ! मोहणिजस्स कम्मस्स जहण्णठितिबंधए, तव्वतिरित्ते अजहण्णे।
[१७४३ प्र.] भगवन्! मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक कौन है ?
[१७४३ उ.] गौतम! वह अन्यतर बादरसम्पराय, उपशामक अथवा क्षपक होता है । हे गौतम! यह मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक होता है, उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है।
१७४४. आउयस्स णं भंते! कम्मस्स जहण्णठितिबंधए के ? ___ गोयमा ! जे णं जीवे असंखेप्पद्धप्पविढे सव्वणिरुद्ध से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउअबंधद्धाए, तीसे णं आउअबंधद्धाए चरिमकालसमयंसि सव्वजहणियं ठिई पजत्तापजत्तियं णिव्वत्तेति। एस णं गोयमा ! आउयकम्मस्स जहण्णठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहण्णे। .. [१७४४ प्र.] भगवन् ! आयुष्यकर्म का जघन्य स्थिति-बन्धक कौन है ?
[१७४४ उ.] गौतम! जो जीव असंक्षेप्य-अद्धाप्रविष्ट होता है, उसकी आयु सर्वनिरुद्ध (सबसे कम) होती है। शेष सबसे बड़े उस आयुष्य-बन्धकाल के अन्तिम काल के समय में जो सबसे जघन्य स्थिति को तथा पर्याप्तिअपर्याप्ति को बांधता हे। हे गौतम! यही आयुष्यकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक होता है, उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है।
विवेचन-निष्कर्ष – मोहनीय और आयुकर्म को छोडकर शेष पांच कर्मों की जघन्य स्थिति का बन्धक जीव सूक्ष्मसम्पराय अवस्था से युक्त उपशमक अथवा क्षपक दोनों में से कोई एक (अन्यतर) होता है। तात्पर्य यह है कि ज्ञानावरणीयादि कर्मों का बन्ध सूक्ष्मसम्पराय अवस्था में उपशमक और क्षपक दोनों को जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है । अतएव दोनों का स्थितिबन्ध का काल समान होने से कहा गया है – उपशमक अथवा क्षपक दोनों में से कोई एक। यद्यपि उपशमक और क्षपक दोनों का स्थितिबन्धकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है, तथापि दोनों के अन्तर्मुहूर्त के प्रमाण में अन्तर होता है। क्षपक की अपेक्षा उपशमक का बन्धकाल दुगुना समझना चाहिए।