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[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२१३५-२] इसी प्रकार (एक-एक असुरकुमार से लेकर एक-एक) वैमानिक तक (समझना चाहिए।) २१३६. एवं जाव लोभसमुग्घाए। एते चत्तारि दंडगा।
[२१३६] इसी प्रकार (क्रोधसमुद्घात के समान) लोभसमुद्घात तक (नारक से लेकर वैमानिक तक प्रत्येक के अतीत और अनागत का कथन करना चाहिए।) इस प्रकार ये चार दण्डक हुए।
२१३७. [१] णेरइयाणं भंते ! केवतिया कोहसमुग्घाया अतीया ? गोयमा! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा! अणंता। [२१३७-१ प्र.] भगवन् ! (बहुत) नैरयिकों के कितने क्रोधसमुद्धात अतीत हुए हैं ? [२१३७-२ उ.] गौतम! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! उनके भावी क्रोधसमुद्घात कितने होते हैं ? • [उ.] गौतम! वे भी अनन्त होते हैं। [२ ] एवं जाव वेमाणियाणं। [२१३७-२] इसी प्रकार वैमानिकों तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए । २१३८. एवं जाव लोभसमुग्घाए। एए वि चत्तारि दंडगा।
[२१३८) इसी प्रकार (क्रोधसमुद्घात के समान) लोभसमुद्घात तक समझना चाहिए। इस प्रकार ये चार दण्डक हुए।
२१३९. एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया कोहसमुग्घाया अतीया ?
गोयमा! अणंता, एवं जहा वेदणासमुग्घाओ भणिओ (सु. २१०१-४) तहा कोहसमुग्घाओ वि भाणियव्वो णिरवसेसंजाव वेमाणियत्ते।माणसमुग्घाओ मायासमुग्घाओ य णिरवसेसं जहा मारणंतियसमुग्धाओ (सु. २११६)। लोभसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्घाओ (सु. २१०५-१५)। णवरं सव्वजीवा असुरादी णेरइएसु लोभकसाएणं एगुत्तरिया णेयव्वा।
[२१३९ प्र.] भगवन्! एक-एक नैरयिक के नारकपर्याय में कितने क्रोधसमुद्घात अतीत हुए हैं ? __ [२१३९-उ.] गौतम! वे अनन्त हुए हैं। जिस प्रकार (सू. २१०१-४ में) वेदनासमुद्घात का कथन किया है, उसी प्रकार यहाँ क्रोधसमुद्घात का भी समग्र रूप से यावत् वैमानिकपर्याय तक कथन करना चाहिए। इसी पाकर मानसमुद्घात एवं मायासमुद्घात के विषय में समग्र कथन (सू. २११६ में उक्त) मारणान्तिकसमुद्घात के समान कहना चाहिए। लोभसमुद्घात का कथन (सू. २१०५-१५ में उक्त) कषायसमुद्घात के समान करना चाहिए। विशेष यह है कि असुरकुमार आदि सभी जीवों का नारकपर्याय में लोभकषायसमुद्घात की प्ररूपणा एक से लेकर करनी चाहिए।