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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२६१ वायुकायिक विशेषाधिक होते हैं, इन सबसे असमवहत वायुकायिक असंख्यात गुणा अधिक होते हैं, क्योंकि सकलसमुद्घातों वाले वायुकायिकों की अपेक्षा स्वभावस्थ वायुकायिक स्वभावतः असंख्यातगुणा पाये जाते हैं। द्वीन्द्रियादि विकलेन्द्रियों में सामुद्घातिक अल्पबहुत्व – सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घातसमवहत द्वीन्द्रिय हैं, क्योंकि पृच्छासमय में प्रतिनियत द्वीन्द्रिय ही मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत पाए जाते हैं। उनसे वेदनासमुद्घातसमवहत द्वीन्द्रिय असंख्यातगुणे हैं। क्योंकि सर्दी-गर्मी आदि के सम्पर्क से अत्यधिक द्वीन्द्रियों में वेदनासगुद्घात होता है। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय संख्यातगुणे हैं, क्योंकि अत्यधिक द्वीन्द्रिय में लोभादि कषाय के कारण कषायसमुद्घात होता हैं। इन सबसे भी असमवहत द्वीन्द्रिय पूर्वोक्तयुक्ति से संख्यातगुणा हैं। द्वीन्द्रिय के समान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय समवहत-असमवहत का अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए। ____पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में सामुद्घातिक अल्पबहुत्व - सबसे कम तैजससमुद्घात से समवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च हैं, क्योंकि तेजोलब्धि बहुत थोड़ों में होती है। उनकी अपेक्षा वैक्रियसमुद्घात-समवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि वैक्रियलब्धि अपेक्षाकृत बहुतों में होती है। उनसे मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वैक्रियलब्धि से रहित सम्मूछिम जलचर, स्थलचर और खेचर, प्रत्येक में पूर्वोक्त वैक्रियसमुद्घातिकों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात समवहत असंख्यातगुणे होते हैं। किन्हीं-किन्हीं वैक्रियलब्धि से रहित या सहित गर्भज तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय में भी मारणान्तिकसमुद्घात पाया जाता है। उनकी अपेक्षा भी वेदनासमुद्घात से समवहत तिर्यंचपंचेन्द्रिय असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि मरते हुए जीवों की अपेक्षा न मरते हुए असंख्यातगुणे हैं। उनकी अपेक्षा भी कषायसमुद्घात-समवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च संख्यात गुणा हैं और इन सबकी अपेक्षा असमवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च पूर्वोक्तयुक्ति से संख्यातगुणे हैं। मनुष्यों में वेदनादि-समुद्घात सम्बन्धी अल्पबहुत्व - सबसे कम आहारकसमुद्घात-समवहत मानव हैं, क्योंकि आहारकशरीर का प्रारम्भ करने वाले मनुष्य अत्यल्प ही होते हैं । केवलिसमुद्घात समवहत मनुष्य उनसे संख्यातगुणे अधिक हैं क्योंकि वे शतपृथक्त्व (दो सौ से नौ सौ तक) की संख्या में पाये जाते हैं। उनकी अपेक्षा तैजससमुद्घात-समवहत, वैक्रियसमुद्घात-समवहत एवं मारणान्तिक-समुद्घात-समवहत मनुष्य उत्तरोत्तर क्रमशः संख्यातगुणा, संख्यातगुणा और असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि पूर्वोक्त दोनों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घातसमवहत मनुष्य इसलिये अधिक हैं कि वह सम्मूछिम-मनुष्यों में भी पाया जाता है। उनसे वेदनासमुद्घातसमवहत मनुष्य असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि म्रियमाण मनुष्यों की अपेक्षा अम्रियमाण संख्यातगुणा अधिक होते हैं और वेदनासमुद्घात अम्रियमाण मनुष्यों में भी होता है। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात-समवहत मनुष्य संख्यातगुणे अधिक होते हैं और इन सबसे असमवहत (समुद्घातों से रहित) मनुष्य असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि १. (क) वही, मलयवृत्ति अ.रा.कोष भा. ७, पृ. ४४६ (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. १९२१ से १९२३ तक २. (क) वही, भा. ५, पृ. १९२३-१९२४ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि.रा.कोष, भा. ७, पृ. ४४७ ३. (क) अभि. रा.कोष भा. ७, पृ. ४४७ (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. १९२५ से १९२७ तक
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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