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________________ २४६] [प्रज्ञापनासूत्र] एक-एक असुरकुमार के असुरकुमारावस्था में अतीतकाल में (यानी जब वह असुरकुमारपर्याय में था, तब) अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं तथा इसी अवस्था में भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी वेदनासमुद्घात होते हैं। इनमें से जो असुरकुमार संख्यातवार, असंख्यातवार या अनन्तवार पुनः-पुनः असुरकुमाररूप में उत्पन्न होगा, उसके भावी वेदनासमुद्घात क्रमशः संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। ___ जैसे असुरकुमार के असुरकुमारावस्था में वेदनंसमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार असुरकुमार के नागकुमारावस्था में भी यावत् वैमानिक अवस्था में अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं । भावी समुद्घात किसी के होते है, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन तथा उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। युक्ति पूर्ववत् समझनी चाहिए। जिस प्रकार असुरकुमार के नारक अवस्था से लेकर वैमानिक अवस्था तक में वेदनासमुद्घात का प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार नागकुमार आदि के वेदनासमुद्घात का प्ररूपण भी समझ लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि असुरकुमार के असुरकुमाररूप स्वस्थान में कितने अतीत-अनागत वेदनासमुद्घात हैं ? इस विषय में जैसे ऊपर बतलाया गया है, उसी प्रकार नागकुमार आदि से लेकर वैमानिकों तक भी स्वस्थानों में वेदनासमघात समझ लेने चाहिए। इस प्रकार चौवीस दण्डकों में से प्रत्येक दण्डक का २४ दण्डकों को लेकर कथन करने पर १०५६ आलापक होते हैं, क्योंकि २४ को २४ से गुणा करने पर १०५६ संख्या होती है। कषायसमुद्घात-एक-एक नारक के नारकावस्था में अनन्त कषायसमुद्घात सम्पूर्ण अतीतकाल की अपेक्षा से व्यतीत हुए हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं। जिसके होता है, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं। प्रश्न के समय में जो नारक अपने भव के अन्तिम काल में वर्तमान है, वह अपनी नरकायु का क्षय करके कषायसमुद्घात किये बिना ही नरकभव से निकलकर अनन्तर मनुष्यभव या परम्पर से मनुष्यभव पाकर मोक्ष प्राप्त करेगा, अर्थात् पुनः कदापि नारकभव में नहीं आएगा, उस नारक के नारकपर्यायसम्बन्धी भावी कषायसमुद्घात नहीं है। जो नारक ऐसा नहीं है, अर्थात् जिसे नरकभव में दीर्घकाल तक रहना है, अथवा जो पुनः कभी नरकभव को प्राप्त करेगा, उसके भावी कषायसमुद्घात होते हैं। उनमें भी जिनकी लम्बी नरकायु व्यतीत हो चुकी है, केवल थोडी-सी शेष है, उनके एक, दो या तीन कषायसमुद्घात होते हैं, किन्तु जिनकी आयु संख्यातवर्ष की या असंख्यातवर्ष की शेष है, या जो पुन: नरकभव में उत्पन्न होने वाले हैं, उनके क्रमशः संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी कषायसमुद्घात समझने चाहिए। एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में अनन्त कषायसमुद्घात अतीत हुए हैं। जो नारक भविष्य में असुरकुमार में उत्पन्न होगा, उस नारक के असुरकुमारपर्याय सम्बन्धी भावी कषायसमुद्घात है और जो नहीं उत्पन्न होगा, उसके नहीं है। जिसके है, उसके कदाचित् संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी कषायसमुद्घात होते हैं। जो १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. ७, पृ. ४४०
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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