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________________ [ छत्तीसवाँ समुद्घातपद ] वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं। [२१०१ उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। 1 [२३९ [प्र.] भगवन्! (एक-एक नारक के नारकत्व में) कितने भावी ( वेदनासमुद्घात) होते हैं। [उ.] गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं। हैं ? हैं ? [२१०२ प्र.] भगवन्! एक-एक असुरकुमार के नारकत्व में (रहते हुए) कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए [[२१०२ उं.] गौतम! वे अनन्त हो चुके हैं। [प्र.] भगवन्! भावी वेदनासमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं, जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । २१०३. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते केवतिया वेदणासमुग्धाया अतीया ? गोयमा! अणंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । [२१०३-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए [२१०३ - १ उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! उनके भावी वेदनासमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं, जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं। [ २ ] एवं णागकुमारत्ते वि जाव वेमाणियत्ते । [२१०३ - २] इसी प्रकार नागकुमारपर्याय से यावत् वैमानिकपर्याय में रहते हुए अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात समझने चाहिए। २१०४. [ १. ] एवं जाव वेदणासमुग्धाएणं असुरकुमारे णेरइयादि-वेमाणियपज्जवसाणेसु भणिए तहा णागकुमारादीया अवसेसेसु सट्ठाण - परट्ठाणेसु श्राणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । [२१०४-१] जिस प्रकार असुरकुमार के नारकपर्याय से लेकर वैमानिकपर्याय पर्यन्त वेदनासमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार नागकुमार आदि से लेकर शेष सब स्वस्थानों और परस्थानों में वेदनासमुद्घात यावत् वैमानिक के
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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