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________________ [ पैतीसवाँ वेदनापद ] [२२१ विवेचन – दुःखादि त्रिविध वेदना का स्वरूप जिसमें दुःख का वेदन हो वह दुःखा, जिसमें सुख का वेदन हो वह सुखा और जिसमें सुख भी विद्यमान हो और जिसे दुःखरूप भी न कहा जा सके, ऐसी वेदना अदुःखअसुखरूपा कहलाती है। साता, असाता और सुख, दुःख में अन्तर स्वयं उदय में आए हुए वेदनीयकर्म के कारण जो अनुकूल और प्रतिकूल वेदन होता है, उसे क्रमशः साता और असाता कहते हैं तथा दूसरे के द्वारा उदीरित (उत्पादित ) साता और असाता को सुख और दुःख कहते हैं, यही इन दोनों में अन्तर है। सभी जीव इन तीनों प्रकार की वेदना को वेदते हैं । - छठा आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी वेदनाद्वार २०७२. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा वेदणा पण्णत्ता । तं जहा अब्भोवगमिया य ओवक्कमिया य । [२०७२ प्र.] भगवान्! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [२०७२ उ.] गौतम ! वेदना दो प्रकार की कही गई । यथा - आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी । २०७३. णेरड्या णं भंते! किं अब्भोवगमियं वेदणं वेदेति ओवक्कमियं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णो अब्भोवगमियं वेदणं वेदेंति, ओवक्कमियं वेदणं वेदेति । - - - [२०७३. प्र.] भगवान् ! नैरयिक आभ्युपगमिकी वेदना वेदते हैं या औपक्रमिकी वेदना वेदते हैं ? [२०७३ उ.] गौतम ! वे आभ्युपगमिकी वेदना नहीं वेदते, औपक्रमिकी वेदना वेदते हैं। २०७४. एवं जाव चउरिंदिया । [२०७४] इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक कहना चाहिए। २०७५. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य दुविहं पि वेदणं वेदेति । [२०७५] पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्य दोनों प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं। २०७६. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरड्या (सु. २०७३) । [२०७६] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में (सू. २०७३ में उक्त) नैरयिकों के समान कहना चाहिए । - विवेचन दो प्रकार की विशिष्ट वेदना: स्वरूप और अधिकारी • स्वेच्छापूर्वक अंगीकार की जाने वाली वेदना आभ्युपगमिकी कहलाती है। जैसे- साधुगण केशलोच, तप, आतापना आदि से होने वाली शारीरिक पीड़ा स्वेच्छा से स्वीकर करते हैं। जो वेदना स्वयमेव उदय को प्राप्त अथवा उदीरित वेदनीयकर्म से उत्पन्न होती है, वह औपक्रमिकी कहलाती है, जैसे नारक आदि की वेदना । १. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ८९३-८९४ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५५६
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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