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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ] स्वीकार की जाती हैं, यथा - केशलोचादि, वे आभ्युपगमिकी होती हैं, किन्तु जो वेदनाएँ कर्मों की उदीरणा द्वारा वेदनीयकर्म का उदय होने से होती हैं, वे औपक्रमिकी हैं। ये दोनों वेदनाएँ कर्मों से सम्बन्धित हैं। सातवें द्वार में निदा अनिदा दो प्रकार की वेदना का निरूपण है। जिसमें चित्त पूर्ण रूप से लग जाए या जिसका ध्यान भलीभांति रखा जाए, उसे निदा और इससे विपरीत जिसकी ओर चित्त बिल्कुल न हो, उसे अनिदा वेदना कहते हैं । अथवा चित्तवती सम्यक्विवेकवती वेदना निदा है, इसके विपरीत वेदना अनिदा है। वस्तुतः इन दोनों वेदनाओं का सम्बन्ध आगे चलकर क्रमश: संज्ञी और असंज्ञी से जोड़ा गया है। . निदावेदना का फलितार्थ वृत्तिकार ने यह बताया है कि पूर्वभव सम्बन्धी शुभाशुभ कर्म, वैरविरोध या विषयों का स्मरण करने में असंज्ञी जीवों के अनिदा और संज्ञी जीवों के निदावेदना अनुभव के आधार पर होती है। इसी प्रकार एक रहस्य यह भी बताया गया है कि जो जीव मायीमिथ्यादृष्टि हैं, वे अनिदा और अमायीसम्यग्दृष्टि निदा वेदना भोगते हैं। २१४] - कुछ स्पष्टीकरण – (१) शीतोष्ण वेदना का उपयोग (अनुभव) क्रमिक होता है अथवा युगपत् ? इसका समाधान वृत्तिकार ने किया है कि वस्तुतः उपयोग क्रमिक ही हैं, परन्तु शीघ्र संचार के कारण अनुभव करने में क्रम प्रतीत नहीं होता है। (२) इसी प्रकार शीतोष्ण आदि वेदना समझनी चाहिए। इसी प्रकार अदुःखाअसुखा अथवा दुःखसंज्ञा नहीं दी जा सकती। इसी तरह शारीरिक-मानसिक संज्ञा, साता असाता, सुखदुख इत्यादि के विषय में समझ लेना चाहिए। (३) साता असांता और सुख-दुःख इन दोनों में क्या अन्तर है ? इसका उत्तर वृत्तिकार ने यह दिया है कि वेदनीयकर्म के पुद्गलों का क्रमप्राप्त उदय होने से जो वेदना हो, वह साता - असाता है। परन्तु जब दूसरा कोई उदीरणा करे तथा उससे साता-असाता का अनुभव हो, उसे सुख-दुःख कहते हैं। षट्खण्डागम में 'बज्झमाणिया वेयणा, उदिण्णा वेयणा, उवसंता वेयणा', इन तीनों का उल्लेख है। B *
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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