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________________ [चौतीसवाँ परिचारणापद] [२०३ [२०४४] इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में (जानना चाहिए।) २०४५. वाणमंतर-जोतिसिया जहा णेरइया (सु. २०४०)। [२०४५] वाणव्यन्तरों और ज्योतिष्कों का कथन नैरयिकों के समान (समझना चाहिए।) २०४६. वेमाणियाणं पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति १ अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति २। से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण . पासंति आहारेंति? गोयमा! वेमाणिया दविहा पण्णत्ता.तं जहा-माइमिच्छद्दिविउववण्णगाय अमाइसम्मबिटिउववण्णगा य, एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं (सु. ९९८) तहा भाणियव्वं जाव से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चति०। [२०४६ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या वे उनको जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं? अथवा वे न जानते हैं, न देखते हैं और आहार करते हैं ? __ [२०४६ उ.] गौतम ! (१) कई वैमानिक जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं और (२) कई न तो जानते हैं, न देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि (१) कई वैमानिक (आहार्यमाण पुद्गलों को) जानतेदेखते हैं और आहार करते हैं और (२) कई वैमानिक उन्हें न तो जानते हैं, न देखते हैं किन्तु आहार करते हैं? [उ.] गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-मायोमिथ्यादृष्टि-उपपन्नक और अमायीसम्यग्दृष्टिउपपन्नक। इस प्रकार जैसे (सू. ९९८ में उक्त) प्रथम इन्द्रिय - उद्देशक में कहा है, वैसे ही यहाँ सब-'इस कारण से है गौतम ! ऐसा कहा गया है', यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन-चौबीसदण्डकवर्ती जीवों द्वारा आहार्यमाण पुद्गलों के जानने-देखने पर - यहाँ विचार किया गया है। नीचे एक तालिका दी जा रही है, जिससे आसानी से जाना जा सके१. नैरयिक जानते हैं, देख र करते हैं नहीं जानते, न देखते आहार करते हैं भवनवासी वाणव्यन्तर ज्योतिष्क एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय २. चतुरिन्द्रिय जीव (१) कई जानते, देखते, आहार करते हैं। (२) कई जानते हैं, देखते नहीं,
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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