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________________ १९०] [२०१७ उ.] गौतम! वे ( अवधि के अन्दर (मध्य में रहने वाले) होते हैं, बाहर नहीं । २०१८. एवं जाव थणियकुमारा । [२०१८ प्र.] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। २०१९. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! णो अंतो, बाहिं । [२०१९ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्च अवधि के अन्दर होते हैं, अथवा बाहर होते हैं ? [२०१९ उ.] गौतम! वे अन्दर नहीं होते, बाहर होते हैं। २०२०. मणूसाणं पुच्छा। गोयमा ! अंतो वि बाहिं पि [२०२० प्र.] भगवन्! मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर होते हैं या बाहर होते हैं ? [२०२० उ. ] गौतम ! वे अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं। [ प्रज्ञापनासूत्र ] २०२१. वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं (सु. २०१७ ) । [२०२१] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन (सू. २०१७ में उक्त) नैरयिकों के समान है। विवेचन • आभ्यन्तरावधि और बाह्यावधि : स्वरूप और व्याख्या जो अवधिज्ञान सभी दिशाओं में अपने प्रकाश्य क्षेत्र को प्रकाशित करता है तथा अवधिज्ञानी जिस अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित क्षेत्र के भीतर ही रहता है, वह आभ्यन्तरावधि कहलाता है। इससे जो विपरीत हो, वह बाह्यावधि कहलाता है । बाह्य अवधि अन्तगत और मध्यगत के भेद से दो प्रकार है। जो अन्तगत हो अर्थात् आत्मप्रदेशों के पर्यन्त भाग में स्थित (गत) हो वह अन्तगत अवधि कहलाता है। कोई अवधिज्ञान जब उत्पन्न होता है, तब वह स्पर्द्धक के रूप में उत्पन्न होता है । स्पर्द्धक उसे कहते हैं, जो गवाक्ष जाल आदि से बाहर निकलने वाली दीपक - प्रभा समान नियत विच्छेद विशेषरूप है। वे स्पर्द्धक एक जीव के संख्यात और असंख्यात तथा नाना प्रकार के होते हैं। उनमें से पर्यन्तवर्ती आत्मप्रदेशों में सामने पीछे, अधोभाग या ऊपरी भाग में उत्पन्न होता हुआ अवधिज्ञान आत्मा के पर्यन्त में स्थित हो जाता है, इस कारण वह अन्तगत कहलाता है । अथवा औदारिकशरीर के अन्त में जो गत- स्थित हो, वह अन्तगत कहलाता है, क्योंकि वह औदारिकशरीर की अपेक्षा से कदाचित् एक दिशा में जानता है। अथवा समस्त आत्मप्रदेशों में क्षयोपशम होने पर भी जो अवधिज्ञान औदारिकशरीर के अन्त में यानी किसी एक दिशा से जाना जाता है, वह अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है। अन्तगत अवधि तीन प्रकार का होता है- (१) पुरतः, (२) पृष्ठतः, (३) पार्श्वतः । मध्यगत अवधि उसे कहते हैं, जो आत्मप्रदेशों के मध्य में गत-स्थित हो । अर्थात् जिसकी स्थिति आत्मप्रदेशों के मध्य में हो, अथवा समस्त आत्मप्रदेशों में जानने का क्षयोपशम होने पर भी जिसके द्वारा औदारिकशरीर के मध्यभाग से जाना जाए वह भी मध्यगत कहलाता है। सारांश यह है कि जब अवधिज्ञान के द्वारा प्रकाशित क्षेत्र अवधिज्ञानी के साथ सम्बद्ध होता है, तब वह आभ्यन्तर - अवधि कहलाता है तथा जब अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित क्षेत्र अवधिज्ञानी —
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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