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________________ बत्तीसइमं संजयपयं बत्तीसवाँ संयतपद जीवों एवं चौबीस दण्डकों में संयत आदि की प्ररूपणा १९७४. जीवा णं भंते! किं संजया असंजया संजयासंजया णोसंजय-णोअसंजय णोसंजयासंजया? गोयमा ! जीवा णं संजया वि असंजया वि संजयासंजया वि णोसंजय णोअसंजय णोसंजयासंजया वि। [१९७४ प्र.] भगवन् ! (समुच्चय) जीव क्या संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं, अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं ? [१९७४ उ.] गौतम! जीव संयत भी होते हैं, असंयत भी होते हैं, संयतासंयत भी होते हैं और नोसंयतनोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं। १९७५. णेरइया णं भंते ! किं संजया असंजया संजयासंजया णोसंजयणोअसंजयणोसंजयासंजया? गोयमा! णेरइया णो संजया, असंजया, णो संजयासंजया णो णोसंजय-णोअसंजय-णोसंजयासंजया। [१९७५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं या नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत होते हैं ? [१९७५ उ.] गौतम ! नैरयिक संयत नहीं होते हैं,न संयतासंयत होते और न नोसंयत नोसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं; किन्तु असंयत होते हैं। १९७६. एवं जाव चउरिंदिया। [१९७७.] इसी प्रकार (असुरकुमारादि भवनवासी, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय तथा त्रीन्द्रिय) चतुरिन्द्रियों तक जानना चाहिए। १९७७. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो संजया, असंजया वि संजयासंजया वि, णो णोसंजयणोअसंजयणोसंजयासंजया। [१९७७ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक क्या संयत होते हैं ? इत्यादि प्रश्न है। [१९७७ उ.] गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्च न तो संयत होते हैं और न ही नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं, किन्तु वे असंयत या संयतासंयत होते हैं। ११७८. ! मणूसा णं भंते ! ० पुच्छा।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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