SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२] [प्रज्ञापनासूत्र] [१९४६] इसी प्रकार (अप्कायिकों से लेकर) यावत् वनस्पतिकायिकों तक (की पश्यत्ता जाननी चाहिए।) १९४७. बेइंदियाणं भंते! कतिविहा पासणया पण्णत्ता ? गोयमा! एगा सागारपासणया पण्णत्ता । [१९४७ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की कितने प्रकार की पश्यत्ता कही गई है ? [१९४७ उ.] गौतम! उनमें एकमात्र साकारपश्यत्ता कही गई है। १९४८. बेइंदियाणं भंते! सागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा - सुयणाणसागारपासणया य सुयअण्णाणसागारपासणया य। [१९४८ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की सागारपश्यत्ता कितने प्रकार की कही है ? [१९४८ उ.] गौतम! दो प्रकार की कही गई है, यथा-श्रुतज्ञानसाकारपश्यत्ता और श्रुत-अज्ञानसाकारपश्यत्ता। १९४९. एवं तेइंदियाण वि। [१९४९] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों की (वक्तव्यता) भी (जाननी चाहिए।) १९५०. चउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सागारपासणया य अणागारपासणया य। सागरपासणया जहा बेइंदियाणं (सु. १९४७-४८)।। [१९५०प्र.] भगवन्! चतुरिन्द्रिय जीवों की पश्यत्ता कितने प्रकार की कही गई है? [१९५० उ.] गौतम! उनकी पश्यत्ता दो प्रकार की कही गई है, यथा - साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता। इनकी साकारपश्यत्ता द्वीन्द्रियों की (सू. १९४७-४८ में कहे अनुसार) साकारपश्यत्ता के समान जाननी चाहिए। १९५१. चउरिदियाणं भंते! अणागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा चक्खुदंसणअणागारपासणया पण्णत्ता। [१९५१ प्र.] भगवन्! चतुरिन्द्रिय जीवों की अनाकारपश्यत्ता कितने प्रकार की कही गई है ? .. [१९५१ उ.] गौतम! उनकी एकमात्र चक्षुदर्शन-अनाकारपश्यत्ता कही है। १९५२. मणूसाणं जहा जीवाणं (सु. १९३९) । [१९५२] मनुष्यों (की साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता) का कथन (सू. १९३९ में उक्त) समुच्चय जीवों के समान है। १९५३. सेसा जहा णेरइया (सु. १९४०-४२) जाव वेमाणिया। [१९५३] वैमानिक पर्यन्त शेष समस्त दण्डकों की पश्यत्ता-सम्बन्धी वक्तव्यता (सू. १९४०-४२ में उक्त) नैरयिकों के समान कहनी चाहिए।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy