________________
[प्रज्ञापनासूत्र]
[९७ वेदन करता हुआ जीव ७,८ या ६ का बन्धक होता है, क्योंकि सूक्ष्मसम्पराय अवस्था में भी मोहनीयकर्म का वेदन होता है, मगर बन्ध नहीं होता। इसी प्रकार का कथन-मनुष्य पद में भी करना चाहिए। नारक आदि पदों में सूक्ष्मसम्परायावस्था प्राप्त न होने से वे ७ या ८ के ही बन्धक होते हैं।
बहुत्व की अपेक्षा से - जीव पद में पूर्ववड् तीन भंग - ब. ब. ब. ए. ब. ब.
नारकों और भवनवासी देवों में -
ब. ब. | ए.
तीन भंग
पृथ्वीकायादि स्थावरों में - प्रथम भंग - ब. | ब.
Ila
.
विकलेन्द्रिय से वैमानिक तक में - नारकों के समान तीन भंग। . मनुष्यों में – नौ भंग ज्ञानावरणीयकर्म के साथ बन्धक के समान।
॥ प्रज्ञापना भगक्ती का छव्वीसवाँ पद समाप्त ॥
१. (क) पण्णवणासुत्तं भा. १ (मू. पा. टि.), पृ. ३९०
(ख)प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ५१७ से ५१९ तक (ग) प्रज्ञापना. (मलय टीका) पद २६ (अभि. राज. कोष भा. ३, पृ. २९६)