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[प्रज्ञापनासूत्र]
[९३ अथवा बहुत से सात के बंधक, एक आठ का, एक छह का और एक, एक कर्मप्रकृति का बन्धक होता है, यों इसके आठ भंग होते हैं । कुल मिलाकर ये सत्ताईस भंग होते हैं।
१७८२. एवं जहा णाणावरणिज्ज तहा दरिसणावरणिजं पि अंतराइयं पि ।
[१७८२] जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक का कथन किया, उसी प्रकार दर्शनावरणीय एवं अन्तराय कर्म के बन्धक का कथन करना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत पद में कर्मसिद्धांत के इस पहलू पर विचार किया गया है कि कौन जीव किस-किस कर्म का वेदन करता हुआ किस-किस कर्म का बन्ध करता है? अर्थात् किस कर्म का उदय होने पर किस कर्म का बन्ध होता है, इस प्रकार कर्मोदय और कर्मबन्ध के सम्बन्ध का निरूपण किया गया है।
ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन और बन्ध – (१) कोई जीव आयु को छोडकर ७ कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है, (२) कोई आठों का बन्ध करता है, (३) कोई आयु और मोह को छोडकर छह कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है, (४) उपशान्तमोह और क्षीणमोह केवल एक वेदनीयकर्म का बन्ध करता है, (५) सयोगीकेवली ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन ही नहीं करते।
नैरयिक से लेकर वैमानिक तक पूर्वोक्त युक्ति से ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए ७ या ८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं।
मनुष्य सम्बन्धी कथन – मनुष्य सामान्य जीववत् ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ सात, आठ, छह या एक प्रकृति का बन्ध करता है। बहुत्व की विवक्षा से - बहुत समुच्चय जीवों के विषय में नौ भंग
(१) सभी ज्ञानावरणीयकर्म वेदक जीव ७ या ८ कर्मों के बन्धक होते हैं।
(२) अथवा बहुत से सात के बन्धक, बहुत से आठ के बन्धक और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है। (सूक्ष्मसम्पराय की अपेक्षा से)।
(३) बहुत से सात के, बहुत से आठ के बन्धक और बहुत से छह के बन्धक होते हैं।
(४) अथवा बहुत से सात के और बहुत से आठ के बन्धक होते हैं और कोई एक जीव (उपशान्तमोह या क्षीणमोह) एक का बन्धक हो
(५) अथवा बहुत से सात के, बहुत से आठ के और बहुत से एक के बन्धक होते है।
(६) अथवा बहुत से सात के और बहुत से आठ के बन्धक होते हैं तथा एक जीव छह का और एक जीव एक का बन्धक होता है।
(७) अथवा बहुत से जीव सात के और बहुत से जीव आठ के बन्धक होते हैं तथा एक छह का बन्धक होता है एवं बहुत से (उपशान्तमोह और क्षीणमोह गुणस्थान वाले) एक के बन्धक होते हैं।
(८) अथवा बहुत से सात के, बहुत से आठ के एवं बहुत से छह के बन्धक होते हैं और कोई एक जीव एक