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ग्यारहवाँ भाषापद]
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णेरइया भासगा वि अभासगा वि ।
[८६८ प्र.] भगवन् ! नैरयिक भाषक हैं या अभाषक? [८६८ उ.] गौतम ! नैरयिक भाषक भी हैं, अभाषक भी । [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि नैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी ?
[उ.] गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इनमें जो अपर्याप्तक हैं, वे अभाषक हैं और जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं । हे गौतम ! इसी हेतु से ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी।
८६९. एवं एगिदियवजाणं णिरंतरं भाणियव्वं ।
[८६९.] इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर (द्वीन्द्रियों से लेकर वैमानिक देवों पर्यन्त) निरन्तर (लगातार) सभी के विषय में समझ लेना चाहिए।
विवेचन - समस्त जीवों के विषय में भाषक-अभाषक-प्ररूपणा - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ८६७ से ८६९ तक) में समुच्चय जीवों की भाषकता-अभाषकता का विश्लेषण करके नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकवर्ती संसारी जीवों की भाषकता-अभाषकता का निरूपण किया गया है।
एकेन्द्रिय जीव अभाषक क्यों - जिह्वेन्द्रिय से रहित होने के कारण एकेन्द्रिय जीव अभाषक ही होते
चतुर्विध भाषाजात एवं समस्त जीवों में उसकी प्ररूपणा
८७०. कति णं भंते ! भासज्जाता पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि भासजाता पण्णत्ता। तं जहा - सच्चमेगं भासज्जातं १ बितियं मोसं २ ततियं सच्चामोसं ३ चउत्थं असच्चामोसं ४।
[८७० प्र.] भगवन् ! भाषाजात (भाषा के प्रकार - रूप) कितने कहे गए हैं ?
[८७० उ.] गौतम ! चार भाषाजात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- (१) एक सत्य भाषाजात, (२) दूसरा मृषा भाषाजात, (३) तीसरा सत्यामृषा भाषाजात और, (४) चौथा असत्यामृषा भाषाजात ।
८७१. जीवा णं भंते ! किं सच्चं भासं भासंति ? मोसं भासं भासंति ? सच्चामोसं भासं भासंति ? असच्चामोसं भासं भासंति ?
गोयमा ! जीवा सच्चं पि भासं भासंति, मोसं पि भासं भासंति, सच्चामोसं पि भासं भासंति,
१. (क) पण्णवणासुत्तं भा.१ (मूलपाठ) पृ.२१४-२१५, (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी टीका भा.३.प्र.३२७