SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ ] [प्रज्ञापनासूत्र के रूप में कहे जाने पर क्या वक्ता की वह भाषा प्रज्ञापनी (सत्य) है, मृषा नहीं है ? भगवान इसका उत्तर भी स्वीकृतिसूचक देते हैं। जिसका आशय है कि यह प्रज्ञापनी है, शाब्दिक (शब्दानुशासन के) व्यवहार के अनुसार इसमें कोई दोष नहीं है। दोष तो तभी होता है, जब वस्तस्वरूप कछ और कथन अन्य रूप में किया जाये। जिस वस्तु का जैसा वस्तुस्वरूप है, उसे वैसा ही कहा जाए तो उसमें क्या दोष है ?? विविध दृष्टियों से भाषा का सर्वांगीण स्वरूप ८५८. भासा णं भंते ! किमादीया किंपहवा किंसंठिया किंपज्जवसिया ? गोयमा ! भासा णं जीवादीया सरीरपहवा वजसंठिया लोगंतपज्जवसिया पण्णत्ता। [८५८ प्र.] भगवन् ! भाषा की आदि (मूल कारण) क्या है ? (कहाँ से है?) (भाषा का) प्रभव (उत्पत्ति) - स्थान क्या है ? (भाषा) का आकार कैसा है ? भाषा का पर्यवसान (अन्त) कहाँ होता है ? [८५८ उ.] गौतम ! भाषा की आदि (मूल कारण) जीव है। (उसका) प्रभव (उत्पाद-स्थान) शरीर है। (भाषा) वज्र के आकार की हैं। लोक के अन्त में उसका पर्यवसान (अन्त) होता है, ऐसा कहा गया है। ८५९. भासा कओ य पहवति ? कतिहिं च समएहिं भासती भासं ?। भासा कतिप्पगारा ? कति वा भासा अणुमयाओ ? ॥१९२॥ सरीरप्पहवा भासा, दोहि य समएहिं भासती भासं। भासा चउप्पगारा, दोण्णि य भासा अणुमयाओ ॥१९३॥ [८५९-प्रश्नात्मक गाथार्थ] भाषा कहाँ से उद्भूत होती है? भाषा कितने समयों में बोली जाती है ? भाषा कितने प्रकार की है ? और कितनी भाषाएँ अनुमत हैं ? ॥१९२ ॥ [८५९-उत्तरात्मक गाथार्थ] भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) शरीर से होता है। भाषा दो समयों में बोली जाती है। भाषा चार प्रकार की है, उनमें से दो भाषाएँ (भगवान् द्वारा बोलने के लिए) अनुमत हैं ॥१९३ ।। विवेचन - विविध दृष्टियों से भाषा का सर्वागीण स्वरूप - प्रस्तुत दो सूत्रों में भाषा के आदि कारण, उत्पत्तिस्थान, आकार, अन्त, बोलने के समय, प्रकार, अनुमतियोग्य प्रकार आदि का निरूपण किया गया है। भाषा का मौलिक कारण - भाषा के उपादान कारण के अतिरिक्त उसका (आदि) मूल कारण क्या है ? यह प्रथम प्रश्न है। उत्तर यह है कि अवबोधबीज भाषा का मूलकारण जीव है, क्योंकि जीव के तथाविध १. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २४५-२५५ (ख) प्रज्ञापनासूत्र प्रमेयबोधिनी टीका, भा. ३, पृ. २८० से २९३ तक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy