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बाईसवाँ क्रियापद ]
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[१५८१-२] इसी प्रकारि (सामान्य जीव के प्राणातिपात से बंधने वाली कर्मप्रकृतियों के निरूपण के समान) एक नैरयिक से लेकर एक वैमानिक देव तक के ( प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाली कर्मप्रकृतियों के बन्ध का कथन करना चाहिए।)
१५८२. जीवा णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ?
गोमा ! सत्तत्तविहबंधधगा वि अट्ठविहबंधगा वि ।
[१५८२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव प्राणतिपात से कितनी कर्मप्रकृ तियाँ बांधते हैं ?
[उ.]. गौतम ! वे सप्तविध (कर्मप्रकृतियाँ) बाँधते हैं या अष्टविध (कर्मप्रकृतियाँ) बाँधते हैं।
१५८३. [ १ ] णेरइया णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ?
गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ।
[१५८३-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नारक प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ?
[उ.] गौतम ! वे नारक सप्तविध ( कर्मप्रकृतियाँ) बांधते हैं अथवा (अनेक नारक) सप्तप्तविध (कर्मप्रकृतियों के) बन्धक होते हैं और (एक नारक) अष्टतिवध (कर्म - ) बन्धक होता है, अथवा (अनेक नारक) सप्तविध कर्मबन्धक होते हैं और ( अनेक) अष्टविध कर्मबन्धक भी ।
[२] एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा ।
[१५८३-२] इसी प्रकार (पूर्वोक्त सूत्र के कथन के अनुसार) असुरकुमारों से लेकर स्तनिकुमार तक (के प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाले कर्म-प्रकृतिबन्ध के तीन-तीन भंग समझने चाहिए।)
[ ३ ] पुढवि-आड-तेउ - वाउ - वणस्सइकाइया य, एते सव्वे वि जहा ओहिया जीवा (सु. १५८२ ) ।
[१५८३-३] पृथ्वी-अप्-तेजो-वायु-वनस्पतिकायिक जीवों के (प्राणतिपात से होने वाले कर्मप्रकृतिबन्ध) के विषय में (सू. १५८२ में उक्त) औधिक (सामान्य- अनेक) जीवों के (कर्मप्रकृतिबन्ध के) समान ( कहना चाहिए।)
[४] अवसेसा जहा णेरड्या ।
[१५८३-४] अवशिष्ट समस्त जीवों (वैमानिकों तक के, प्रणातिपात से होने वाले कर्म-प्रकृतिबन्ध विषय में) नैरयिकों के समान ( कहना चाहिए । )
१५८४. [ १ ] एवं एते जीवेगिंदियवज्जा तिण्णि तिणि भंगा सव्वत्थ भाणियव्व त्ति जाव मिच्छादंसणसल्लेणं ।