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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [ ५३७ [१५८१-२] इसी प्रकारि (सामान्य जीव के प्राणातिपात से बंधने वाली कर्मप्रकृतियों के निरूपण के समान) एक नैरयिक से लेकर एक वैमानिक देव तक के ( प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाली कर्मप्रकृतियों के बन्ध का कथन करना चाहिए।) १५८२. जीवा णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोमा ! सत्तत्तविहबंधधगा वि अट्ठविहबंधगा वि । [१५८२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव प्राणतिपात से कितनी कर्मप्रकृ तियाँ बांधते हैं ? [उ.]. गौतम ! वे सप्तविध (कर्मप्रकृतियाँ) बाँधते हैं या अष्टविध (कर्मप्रकृतियाँ) बाँधते हैं। १५८३. [ १ ] णेरइया णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य । [१५८३-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नारक प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? [उ.] गौतम ! वे नारक सप्तविध ( कर्मप्रकृतियाँ) बांधते हैं अथवा (अनेक नारक) सप्तप्तविध (कर्मप्रकृतियों के) बन्धक होते हैं और (एक नारक) अष्टतिवध (कर्म - ) बन्धक होता है, अथवा (अनेक नारक) सप्तविध कर्मबन्धक होते हैं और ( अनेक) अष्टविध कर्मबन्धक भी । [२] एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा । [१५८३-२] इसी प्रकार (पूर्वोक्त सूत्र के कथन के अनुसार) असुरकुमारों से लेकर स्तनिकुमार तक (के प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाले कर्म-प्रकृतिबन्ध के तीन-तीन भंग समझने चाहिए।) [ ३ ] पुढवि-आड-तेउ - वाउ - वणस्सइकाइया य, एते सव्वे वि जहा ओहिया जीवा (सु. १५८२ ) । [१५८३-३] पृथ्वी-अप्-तेजो-वायु-वनस्पतिकायिक जीवों के (प्राणतिपात से होने वाले कर्मप्रकृतिबन्ध) के विषय में (सू. १५८२ में उक्त) औधिक (सामान्य- अनेक) जीवों के (कर्मप्रकृतिबन्ध के) समान ( कहना चाहिए।) [४] अवसेसा जहा णेरड्या । [१५८३-४] अवशिष्ट समस्त जीवों (वैमानिकों तक के, प्रणातिपात से होने वाले कर्म-प्रकृतिबन्ध विषय में) नैरयिकों के समान ( कहना चाहिए । ) १५८४. [ १ ] एवं एते जीवेगिंदियवज्जा तिण्णि तिणि भंगा सव्वत्थ भाणियव्व त्ति जाव मिच्छादंसणसल्लेणं ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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