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________________ ५२२ ] [ प्रज्ञापनासूत्र असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरेहिंतो दव्वट्टयाए आहारगसरीरा परसट्टयाए अनंतगुणा, वेडव्वियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, तेया- कम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दव्वट्टयाए अनंतगुणा, तेयगसरीरा पदेसट्टयाए अनंतगुणा, कम्मगसरीरा पदेसट्टयाए अनंतगुणा । [ १५६५ प्र.] भगवन् ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण, इन पांच शरीरों में से, द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से, कौन, किससे अल्प, बहुत तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से - सबसे अल्प आहारकशरीर हैं । (उनसे) वैक्रियशरीर, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं । (उनसे) औदारिकशरीर द्रव्य की अपेक्षा से, असंख्यातगुणा हैं । तैजस और कार्मण शरीर दोनों तुल्य (बराबर) हैं, (किन्तु औदारिकशरीर से) द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं । प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम प्रदेशों की अपेक्षा से आहारकशरीर हैं । ( उनसे ) प्रदेशों की अपेक्षा से वैक्रियशरीर असंख्यातगुणा हैं । (उनसे) प्रदेशों की अपेक्षा से औदारिकशरीर असंख्यातगुणा हैं । (उनसे) तैजसशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं । (उनसे ) कार्मणशरीर प्रदेशों की अपेक्ष अनन्तगुणा हैं । द्रव्य एवं प्रदेशों की अपेक्षा से - द्रव्य की अपेक्षा से, आहारकशरीर सबसे अल्प हैं- (उनसे) वैक्रियशरीर द्रव्यों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं । (उनसे) औदारिकशरीर, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं । औदारिकशरीरों से द्रव्य की दृष्टि से आहारकशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं । (उनसे) वैक्रियशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं (उनसे) औदारिकशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं । तैजस और कार्मण, दोनों शरीर द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य (बराबर-बराबर ) हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं । (उनसे) तैजसशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं । (उनसे ) कार्मणशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं । - विवेचन - शरीरों की अल्पबहुत्वविचारणा : द्रव्य, प्रदेश तथा द्रव्य और प्रदेश की दृष्टि से प्रस्तुत सूत्र (१५६५) मकें पूर्वोक्त पांचों शरीरों के अल्पबहुत्व की विचारणा की गई है । स्पष्टीकरण - द्रव्यापेक्षया अर्थात् - शरीरमात्र द्रव्य की संख्या की दृष्टि से सबसे अल्प आहारकशरीर इसलिए है कि आहारकशरीर उत्कृष्ट संख्यात हों तो भी सहस्रपृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होते हैं । समस्त आहारकशरीरों की अपेक्षा वैक्रियशरीर द्रव्यदृष्टि से असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि सभी नारकों, सभी देवों, कतिपय तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, कतिपय मनुष्यों एवं बादर वायुकायिकों के वैक्रियशरीर होते. हैं । समस्त वैक्रियशरीरों की अपेक्षा औदारिकशरीर द्रव्यदृष्टि से (शरीरों की संख्या की दृष्टि से) असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि औदारिकशरीर समस्त पंच स्थावरों, तीन विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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