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________________ ५२० ] [प्रज्ञापनासूत्र [२] तेया-कम्माइं जहा ओरालिएण समं (सू. १५६१-६२) तहेव आहारगसरीरेण वि समं तेया-कम्माई चारेयव्वाणि । [१५६३-२] जैसे (सू. १५६१-१५६२ में) औदारिक के साथ तैजस एवं कार्मण (शरीर के संयोग) का कथन किया है, उसी प्रकार आहारकशरीर के साथ भी तैजस-कार्मणशरीर (के संयोग) का कथन करना चाहिए। १५६४. जस्स णं भंते ! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं ? जस्स कम्मगसरीरं तस्स तेयगसरीरं? - गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं नियमा अस्थि, जस्स वि कम्मगसरीरं तस्स वि तेवगसरीरं णियमा अस्थि । [१५६४ प्र.] भगवन् ! जिसके तैजसशरीर होता है, क्या उसके कार्मणशरीर होता है ? (तथा) जिसके कार्मणशरीर होता है, क्या उसके तैजसशरीर भी होता है ? [उ.] गौतम ! जिसके तैजसशरीर होता है, उसके कार्मणशरीर अवश्य ही (नियम से) होता है और जिसके कार्मणशरीर होता है, उसके तैजसशरीर भी होता है। विवेचन - शरीरों के परस्पर संयोग की विचारणा - संयोगद्वार के प्रस्तुत ६ सूत्रों (१५५९ से १५६४ तक) में एक जीव में औदारिकशरीर आदि पांच शरीरों में से कितने शरीर एक साथ संभव हैं? इसका विचार किया गया है। फलितार्थ - इन सब सूत्रों का फलितार्थ इस प्रकार है१. औदारिक के साथ-वैक्रिय आहारक, तैजस, कार्मण संभव हैं । २. वैक्रिय के साथ-औदारिक, तैजस, कार्मण, शरीर संभव हैं । ३. आहारक के साथ-औदारिक, तैजस, कार्मण शरीर संभव हैं । ४. तैजस के साथ-औदारिक, वैक्रिय, आहारक कार्मण शरीर संभव हैं । ५. कार्मण के साथ-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस शरीर संभव है । स्पष्टीकरण-(१) जिसके औदारिकशरीर होता है, उसके वैक्रियशरीर विकल्प से होता है । क्योंकि । वैक्रियलब्धिसम्पन्न कोई औदारिकशरीरी जीव यदि वैक्रियशरीर बनाता है, तो उसके वैक्रियशरीर होता है । जो जीव वैक्रियलब्धिसम्पन्न नहीं है, अथवा वैक्रियलब्धियुक्त होकर भी वैक्रियशरीर नहीं बनाता, उसके १. पण्णवणासुत्तं (प्रस्तावनादि) भा. २, पृ. ११८
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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